अंकुर ने ग्रीटिंग कार्ड भेजा है। सचमुच का, कागज़ का!
ई-कार्ड नहीं है, कहीं क्लिक करने पर संगीत नहीं बजता, सीनरी बदलती नहीं, अन्दर का सन्देश भी वैसे का वैसे ही रहता है। लेकिन पेज बंद करते ही गायब नहीं हो जाता, पास रहता है, छू सकता हूँ उसे।
छूता हूँ भी! बार बार। खोलता हूँ, अन्दर देखता हूँ। कुछ ख़ास नहीं लिखा है। पर फिर भी, लिफाफे पर अपना नाम और पता लिखा देखता हूँ। हाथ से लिखा गया है। प्रिंटेड नहीं है। अच्छा लगता है।
मैंने अंकुर को कार्ड नहीं भेजा। किसी को नहीं भेजा। कई साल हो गए अब तो कार्ड भेजे हुए और पाए हुए! पिछले दिन एक एन.जी.ओ. की स्टाल से कुछ कार्ड ले लिए थे, पड़े हैं अभी। भूल गया भेजना।
छोटा था तो मम्मी पापा के साथ बड़े शौक़ से इलाहाबाद में कटरा की किसी स्टेशनरी की दूकान से दर्ज़नों कार्ड लेने जाता था| भैया, दीदी और ताऊ ताई के लिए सबसे अच्छे और बड़े कार्ड होते थे। बाकी रिश्तेदारों और परिचितों के लिए रिश्तों की गर्मी के मुताबिक साइज़ के! उसके बाद सबमे स्केच पेन से सुन्दर शब्दों में कुछ अच्छी अच्छी बातें लिखना, लिफाफे पर टिकट लगाना, पोस्ट ऑफिस जाके पोस्ट करना, सब काम कितने उत्साह से होते थे।
मंहगाई के साथ कार्ड्स की गिनती कम हो गयी। मैं कॉलेज चला गया, कार्ड भेजना लगभग बंद हो गया। (पैसे जो बचाने थे!) अब मम्मी पापा बूढ़े हो गए हैं। ताऊ ताई के साथ ही रहते हैं। फोन है, फोन पर ही हैप्पी न्यू इयर बोल देते हैं। मैं भी यही करता हूँ। दोस्त ईमेल पर हैप्पी न्यू इयर कर देते हैं। मैं भी यही करता हूँ। कुछ एक साल पहले तक ई-कार्ड आते जाते थे, अब २ लाइन की ईमेल या ऑरकुट पर स्क्रैप से काम चल जाता है।
पर आज ये कार्ड देख कर कुछ अजीब सा लग रहा है। अच्छा सा। जैसे किसी प्यारी सी किताब के कोई खोये हुए पन्ने मिल गए हों, और फिर से वो किताब पढ़ने का मन करने लगे। यहाँ हैदराबाद में तो ठण्ड होती नहीं है, लेकिन फिर से वो १० साल पहले वाली ठण्ड, और रजाई में बैठ कर मम्मी पापा के साथ टीवी देखते हुए नए साल का इंतज़ार करना और १२ बजते ही, बाहर निकल कर सबको हैप्पी न्यू इयर बोलना, सब याद आ गया!!!
अभी भी कार्ड को देख रहा हूँ और मुस्कुरा रहा हूँ!
2 टिप्पणियां:
सब याद कर मैं भी मुस्कुरा रहा
बी एस पाबला
मैं भी !!!
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