शनिवार, 9 अप्रैल 2011

पर भ्रष्ट है कौन?

सबसे पहले तो किसन बापट बाबूराव हजारे यानि अन्ना हजारे को कोटिशः धन्यवाद। वैसे सच तो ये है कि अन्ना को जितने भी धन्यवाद दिए जाएं वो कम हैं क्यूंकि ७२ साल के इस बूढ़े आदमी ने हमारे समाज को और हम सब को एक गहरी नींद से जगा दिया और लोगों को मजबूर कर दिया कि वो अपने एसी ऑफिस से निकल कर सड़क पर आएं, 'हम कर ही क्या सकते हैं' की हताशा को छोड़ें और सरकारों को बताएं कि चुनाव के ५ साल के बीच में भी जनता जाग सकती है।

लेकिन मैं एक बात समझना चाहता हूँ। भ्रष्टाचार है क्या? क्यूंकि इसके बारे में जितना पढ़ा, सुना, देखा है उससे तो यही लगता है कि भ्रष्टाचार का मतलब सरकारी दफ्तरों और कर्मचारियों में रिश्वतखोरी की आदत है या फिर मंत्रियों और उद्योगपतियों की मिलीभगत। भ्रष्टाचार की बात आती है तो फिर समाज और 'मिडिल क्लास' यानि मध्यम वर्ग को कैसे भूल सकते हैं।

मैं ये समझना चाहता हूँ कि समाज कौन है? या फिर अगर हम मध्यम वर्ग पर ध्यान केन्द्रित करें तो मध्यम वर्ग किन लोगों से बनता है? स्कूल के अध्यापक, डॉक्टर, वकील, सॉफ्टवेयर कर्मी, सरकारी बाबू, छोटे और मध्यम व्यापारी और ऐसे ही तमाम लोग। क्या अध्यापक कक्षा में पढ़ाने के बजाये ट्यूशन नहीं करते? क्या सॉफ्टवेयर कर्मी झूठे मेडिकल बिल नहीं बनवाते? क्या व्यापारी धांधली नहीं करते? डॉक्टर और वकील अनोखे तरीकों से अपने ग्राहकों से ज्यादा पैसे नहीं ऐंठते? कहने का तात्पर्य ये है कि समाज जिन लोगों से बनता है उन सभी लोगों के भ्रष्टाचार की वजह से समाज त्रस्त है, वजह कहीं बाहर नहीं है अन्दर ही है।

ये भी सच है कि राजनीतिज्ञों को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती और जब तक ऊंचे पदों पर बैठे नेता और उनके करीबी भ्रष्ट अफसरों पर लगाम नहीं लगती तब तक ये उम्मीद रखना बेकार है कि छोटे कर्मचारी अपना काम ईमानदारी से करेंगे, या कहें, कर सकेंगे! लेकिन क्या ये एक जायज़ बात है कि क्यूंकि सरकार भ्रष्ट है इसलिए हम भी अपने स्तर का भ्रष्टाचार करेंगे? मुझे नहीं लगता।

हमारी आदत है हर चीज़ के लिए दूसरों पर उँगली उठाने की। भ्रष्टाचार ख़त्म करना है तो सरकार करे, न्यायपालिका करे, मीडिया करे, अन्ना हजारे करें। हम क्या करें? हमारी ज़िम्मेदारी क्या सिर्फ 'अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं' बोल कर ख़त्म हो जाती है? ध्यान रखिये कि जनता को वही नेता मिलता है जिसके वो लायक होती है। हमारे नेता, हमारे अफसर, हमारे बाबू कहीं पाकिस्तान से आयात (इम्पोर्ट) नहीं होते, वो हमारे बीच में से आते हैं। हमारे भाई, बहन, पड़ोसी, परिचित होते हैं। भ्रष्टाचार ख़त्म करना है तो हमें सुधरना पड़ेगा। अन्यथा ना तो जन लोकपाल बिल कोई जादू की छड़ी है और ना अन्ना कोई जादूगर, जो बस पलक झपकते ही भ्रष्टाचार ख़त्म कर देंगे!