गुरुवार, 28 मई 2020

हम भूल जाएंगे

हम भूल जाएंगे 

रेलवे स्टेशन पर मरी हुई माँ 
को जगाता बच्चा,
सूटकेस पे सोते हुए 
खींचा जाता बच्चा,
ट्रेन में भूख प्यास और गर्मी 
से रो रो कर मर जाता बच्चा।
पर कल जब हमारे बच्चे 
स्कूल जाएंगे,
हम इन सबको भूल जाएंगे!


सैकड़ों मील पैदल 
चलते मज़दूर,
ट्रकों में बोरियों 
जैसे भरते मज़दूर,
ट्रेन के नीचे कट 
के मरते मज़दूर।
यकीन मानिये कल भी ये गलियों 
की धूल खाएंगे,
पर तब तक 
हम इन सबको भूल जाएंगे!


ठेकेदार से मज़दूरी के 
लिए गिड़गिड़ाती औरतें, 
छोटे बच्चे को गोद में 
ले के घर जाती औरतें,
सड़क पे प्रसव में ही 
मर जाती औरतें।
कल जब हम धूमधाम से 
महिला दिवस मनाएंगे,
कसम से कहता हूँ,
हम इन सबको भूल जाएंगे!
 
टीवी के आगे बैठ कर सरकार के 
महिमा गान सुनते हम,
कभी चीन, कभी पाकिस्तान 
कभी हिन्दू-मुसलमान सुनते हम, 
20 लाख करोड़ में 
अपना-अपना हिस्सा गिनते हम।
कौन सुनेगा अगर कभी 
अपने भी दिन ऐसे आएंगे,
पर पक्का है ऐसे ख़्याल भी
हमें नहीं जगाएंगे।
चार दिन में देख लेना ,
हम सब भूल जाएंगे। 
 
फिर एक बार,
हम सब कुछ भूल जाएंगे