शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007

एक सवाल गुजरात के लिए.

कह नहीं सकता कि यह सवाल पूछने के लिए यह सही समय है या नहीं, क्यूंकि गुजरात में चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और अगर समाचार चैनलों की मानें तो नरेन्द्र भाई मोदी फिर से गद्दी सम्हालने के लिए तैयार हैं।

वापिस आते हैं मेरे प्रश्न पर जो सिर्फ गुजरातियों के लिए नहीं बल्कि उन सभी के लिए है जो मानते हैं कि मोदी ही गुजरात के मुख्यमंत्री बनने योग्य हैं।

मोदी के समर्थक मुख्यतः दो बातें बोलते हैं -
१) वो कुशल प्रशासक हैं और उन्होने गुजरात को ना केवल विकास के नक्शे पर आगे ला खड़ा किया है, उनकी ही बदौलत गुजरात में इतना निवेश हुआ है।
२) अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले को छोड़ दें तो गुजरात में आतंकवादी घटनाएं ना के बराबर हुई हैं।

मेरा मानना है कि दूसरी बात के लिए मोदी को श्रेय दिया जाना कोरी बकवास और आंखों में धूल झोंकने की कोशिश के सिवा कुछ नहीं है। इस तरह की बातें सिर्फ मोदी की मुस्लिम-विरोधी छवि को सहारा देने और उसको सही साबित करने का प्रयास भर है। वे कहते हैं कि आतंकवादी गुजरात पर हमले इसलिए नहीं करते क्यूंकि उन्हें डर है कि अंततः इसकी गाज गुजराती मुसलामानों पर ही गिरेगी।

और मैं इस बात को बकवास और आंखों में धूल झोंकने की कोशिश इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि गुजरात में यदि फिर से प्रशासन समर्थित दंगे होते हैं तो आतंकवादियों को बैठे बिठाये और अधिक समर्थक और शायद नए रंगरूट मिल जाएंगे! इसलिए यह तो आतंकवाद के लिए खुला आमंत्रण है और यदि इस तरह की घटनाएं नहीं हो रहीं हैं तो इसका श्रेय गुजरात पुलिस और खुफिया विभाग को दीजिए।

और अब मेरा सवाल (मैं इस बात की गहराई में नहीं जाऊंगा कि मोदी भाई कितने अच्छे प्रशासक और नेता हैं और वो कितना निवेश लाये हैं। उम्मीद करता हूँ कि वो उतने ही अच्छे नेता बने रहेंगे और गुजरात में निवेश लाते रहेंगे। हालांकि बहुत से लोग इन दावों पर सवाल खडे करते हैं जिनको मोदी समर्थक बेफिक्री से दरकिनार कर देते हैं!)

क्या यह सारा विकास और निवेशी डॉलर उस सांप्रदायिक सद्भाव को वापिस ला सकेंगे जो मोदी जी की 'बांटो और राज करो' की नीति की बलि चढ़ गया है? जो साम्प्रदायिक दुराभाव मोदी जी ने गुजरात के लोगों में पैदा किया है उसे तो हर कोई महसूस कर सकता है लेकिन वही अंत नहीं है!

मीडिया में मोदी के उन भाषणों का ज्यादा ज़िक्र नहीं हुआ है जिनमें वो केंद्रीय सरकार को 'दिल्ली सल्तनत' कह कर संबोधित करते हैं और गुजरात की आर्थिक स्वतंत्रता की घोषणा करते हैं। वो 'दिल्ली सल्तनत' को चुनौती देते हैं कि वो गुजरात से एक पैसा न ले तो गुजरात भी 'उनसे' कुछ नहीं चाहता। यानी अब यह 'हम' और 'वो' सिर्फ हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नहीं रह गया बल्कि अब यह रेखाएं देश और राज्य के बीच भी खीची जाने लगी हैं।

और अगर कोई मोदी जी के दावों या बातों पर सवाल खडे करे तो या तो वो 'द्रोही' करार दिया जाएगा और या फिर 'उन लोगों' में से जो गुजरात से ईर्ष्या करते हैं और उसे तबाह कर देना चाहते हैं।

सीधे श्बदोने में कहें तो मोदी साहब वही कर रहे हैं जो अमेरिका में बुश ने किया: काल्पनिक शत्रु बनाइये, जनता को उनका भय दिखाइए और फिर स्वयम को उनका पहरेदार बताइए.

सवाल एक बार फिर दोहरा देता हूँ: क्या साम्प्रदायिक सद्भाव वो कीमत है जो गुजरात को अपने विकास के लिए चुकानी पड़ रही है? और क्या गुजराती समझ रहे हैं यह कीमत कितनी ज्यादा भारी है?