सोमवार, 2 अगस्त 2010

हम करें नेकी, वो डालें दरिया में!

स्टार प्लस पर पिछले दिनों एक नया म्यूजिकल रिअलिटी शो शुरू हुआ जिसमें भारत और पाकिस्तान के बच्चे भाग ले रहे हैं। 'छोटे उस्ताद' नाम का ये शो पहले भी आता था, लेकिन तब इसमें सिर्फ भारतीय बच्चे ही होते थे। इस बार इस कार्यक्रम के जज पाकिस्तानी गायक राहत फ़तेह अली खान और भारतीय गायक सोनू निगम हैं।

पिछले ही हफ्ते एक और खबर सुर्ख़ियों में थी: वाशिंगटन के एक संस्थान द्वारा कराये गए एक सर्वे में मालूम पड़ा कि ५३ % पाकिस्तानियों के लिए अल कायदा और तालिबान से बड़ा खतरा भारत है. वो तब है जब पाकिस्तान में आये दिन बम विस्फोट में नागरिक मारे जा रहे हैं.

आधे से ज्यादा पाकिस्तानियों के लिए भारत ज्यादा बड़ा खतरा है? नहीं नहीं, कहीं तो कुछ गलती हो गयी हो गयी होगी शोधकर्ताओं से. आखिर हम 'छोटे उस्ताद' जैसे कार्यक्रमों के ज़रिये पाकिस्तानियों के साथ बेहतर रिश्ते बना रहे हैं. उनके गायक और अभिनेता हमारी फिल्मों में काम करते हैं, हमारी फिल्में और संगीत उनके यहाँ बहुत लोकप्रिय हैं... वगैरह वगैरह.

हम कब तक अपने आप को इन सब दलीलों से बेवकूफ बनाते रहेंगे. हमेशा से हम कहते आये कि दीवारें तो सरकारों की बनायी हुई हैं, दोनों देशों के लोग तो आपस में प्रेम और भाईचारे से रहना चाहते हैं। हर साल वाघा सीमा पर मोमबत्ती जला जला के दोस्ती के गीत गाये गए, उनके कलाकारों और खिलाड़ियों को हमेशा इतना प्यार और सम्मान दिया गया , उनके देश के बच्चों के मुफ्त इलाज किये गए।


इतने साल तक दोस्ती के पुल बनाते रहने का ये फल मिला है?

अब हमको ये सवाल पूछना चाहिए कि कब तक हम दोस्ती का हाथ बढाते रहेंगे और कब तक उम्मीद करते रहेंगे कि उधर से जो हाथ बढ़ेगा उसमें पिस्तौल नहीं होगी? पहल करने की भी एक सीमा होती है, पहल का जब जवाब ना आये तो अकल आ जानी चाहिए. अगर हमारी भलमनसाहत का पाकिस्तानी यह जवाब देंगे तो कब तक हम उनसे बेहतर रिश्तों की उम्मीद करते रहेंगे?