मंगलवार, 24 जून 2008

याहू और गूगल के भारत संस्करण, बड़े काम की चीज़!

ऑनलाइन सर्च के दिग्गजों के भारतीय संस्करण अपनी अलग पहचान बनाने लगे हैं।

याहू इंडिया सर्च में अब आप खोज के सभी परिणामों को एक पोर्टल के रूप में देख सकते हैं। यानी कि सारे हाइपर लिंक्स, फोटो और विडियो एक तरतीब से एक पेज में आ जाएंगे। उदहारण के लिए मैंने 'यूरो २००८' खोजा तो ये पेज आया:

यह सुविधा सिर्फ़ याहू भारत पर उपलब्ध है क्यूँ कि इसे याहू भारत ने बनाया है। आगे शायद इसे विश्व भर के लिए उपलब्ध कराया जाए।

याहू ने एक और सेवा शुरू की है जिससे आप अपने शहर से जुड़ी सारी खबरें, मौसम का हाल, यातायात मार्ग और याहू आन्सर्स के सवाल एक पोर्टल के रूप में देख सकते हैं। देखिये यहाँ

गूगल ने अपनी फ़ोन सर्च सेवा भारत में शुरू कर दी है। मुझे बंगलोर के बारे में नहीं पता, पर हैदराबाद में आप इस कर-मुक्त संख्या: 1-800-41-999-999 पर काल कर सकते हैं और फ़िल्म शो, रेस्त्रां आदि के बारे में जानकारी पा सकते हैं। यह जानकारी आपको एस एम एस द्वारा भी भेजी जाती है। यह जानकारी ऑनलाइन आप गूगल लोकल पर देख सकते हैं ही!


तो इस पूरी कहानी का लब्बोलुआब यह कि, कभी कभी याहू भारत और गूगल भारत के दर्शन भी कर लिया कीजिये, काम की काफ़ी चीज़ें होती हैं यहाँ!

रविवार, 1 जून 2008

दारू के ठेके पे कोयल बोली

तो जी बात जे भई कि हमारे घर के पास जो 'बार-कम-रेस्टोरेंट' है (जो असलियत में रेस्टोरेंट कम बार ज़्यादा है) उसके 'बगीचे' में एक युक्लिप्टस का पेड़ है, उस पर बैठ कर कोयल गा रही थी (अच्छा एक बात बताओ, कोयल के बोलने को 'गाना' क्यूँ कहते हैं?)

छोटी सी बात है पर बड़े सवाल खड़े हो गए!

क्या ये पहली कोयल थी जो युक्लिप्टस के पेड़ पर बैठ के बोल रही थी? अगर हाँ तो क्यों? क्यों आज तक कोयलों ने इन मासूम पेड़ों के साथ भेदभाव किया? वैसे अगर इतिहास पर नज़र डालें तो कोयल को हमेशा अमराइयों में ही गवाया गया है। कभी सुना नहीं कि फलां कोयल अमरुद के पेड़ पर गाती पायी गयी या अमुक प्रेमी युगल उस नीम के पेड़ के नीचे मिलते थे जिसके ऊपर कोयल गीत गाती थी। किसी कवि ने तो यहाँ तक लिखा है कि आम की मिठास का कारण ही कोयल का गाना है। क्या बेवकूफी है, अगर ऐसा होता तो एक एक गन्ने के ऊपर तीन कोयलों को बैठ कर टेर लगानी पड़ती! कृषि मंत्रालय को इस कवि के विरुद्ध कोई एक्शन लेना चाहिए। कहीं चीनी मंत्रालय के किसी मूर्ख मंत्री ने इस बात पे यकीन कर लिया तो इतनी कोयलें कहाँ से आएंगी?

और अगर यह वाकई पहली कोयल थी जो युकेलिप्टस के पेड़ पर गाना गा रही थी तो क्या वजह थी इस कोयल ने अपने समाज की रीति रिवाज़ को छोड़ कर, आम के पेड़ों से नाता तोड़ कर इस पेड़ पर गाना स्वीकार किया? क्या इसकी वजह कोई प्रेम प्रसंग था (किसी दूसरे पक्षी के साथ, जो कोयल समाज के ठेकेदारों को नागवार गुज़र रहा था) या पेड़ के मालिकों ने कोयल को रिश्वत दी थी? या फ़िर कोयल का मानसिक संतुलन बिगड़ने की वजह से वो आम और युकेलिप्टस में अन्तर करना भूल गयी थी?

और अगर यह पहली कोयल नहीं थी जिसने ऐसा कदम उठाया (माने अपना छोटा सा पंजा उठाया) तो आज के पहले यह सवाल, सवाल क्यों नहीं बना? मीडिया ने इस सामाजिक परिवर्तन को हम सबसे क्यों छुपा कर रखा?कोयल समाज की इस क्रांति को दुनिया के सामने क्यों नहीं लाया गया?

बहरहाल अब यह बात मेरी नज़र में आ गयी है, आप फिक्र मत कीजिये। किसी हिन्दी 'समाचार' चैनल की तरह मैं इस ख़बर की तह तक पहुँच कर ही दम लूंगा। फ़िर कोयल क्या कौवा भी युकेलिप्टस के पेड़ पर नहीं गा सकेगा!