शनिवार, 14 जुलाई 2007

क्या हो गया है भारतीय मीडिया को?

हाल के दिनों में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने भारतीय समाचार मीडिया, खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया, के बारे में मेरे सवालों की नींव और मज़बूत कर दी।

पहले थोड़ी सुखद खबर, जो शायद उतनी अहम नहीं थी जितनी हमारे मीडिया ने बना के छोड़ी! ७ जुलाई को एक मित्र की शादी से वापिस आ कर जब टीवी पर समाचार देखा तो सारे समाचार चैनल एक स्वर में ताज महल के अन्तिम ७ में आने की खबर सुना रहे थे। सभी चैनल इतने ज़्यादा उत्साहित थे कि आधिकारिक घोषणा होने के पहले ही ताज के चुने जाने की खबर फैलाई जा चुकी थी। सिर्फ NDTV ने खबर को पीटीआई के हवाले से होने की बात नहीं छुपाई। हिंदी चैनल इतने ज़्यादा उत्साहित थे कि बिना किसी आधार के ही ताज के शीर्ष पर होने की खबर उड़ा दी और अभी तक कई लोग इस गुमान में होंगे।

इस आयोजन की आधिकारिक साइट n7w.com के अनुसार सभी धरोहर एक समान हैं और इनमे कोई प्रतियोगिता नहीं है। (पढ़ें यहाँ) लेकिन यदि वोट के आधार पर देखा जाये तो ताज पहले नहीं चौथे स्थान पर आता है, पहले स्थान पर पेरू का माचू पीचू है।

लेकिन जब हर खबर को ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर ही प्रस्तुत करना हो तो सही गलत, सच झूठ जैसी बातों को सोचने, समझने का समय ही कहाँ है , और जब २४ घंटे आप अपना झूठ लोगों के मन में भर चुके हों, तो सच बोलने की कूवत सब में नहीं होती!

बहरहाल दूसरी खबर थी, आस्ट्रेलिया में मोहम्मद हनीफ़ के बारे में। आज सुबह जब सभी अखबारों की सबसे बड़ी खबर हनीफ़ के 'जल्दी' ही रिहा होने के बारे में थी, तब टीवी चैनल हनीफ़ पर नए आरोप लगने की खबर प्रसारित कर रहे थे।

आस्ट्रेलिया पुलिस ने कभी नहीं कहा था कि हनीफ़ को रिहा किया जाएगा। उन्होने अदालत से हनीफ़ से पूछताछ के लिया और अधिक समय मांगने से मना किया था, और इसी को भारतीय समाचार मीडिया ने अपने अनुसार गढ़ लिया! ज़रा सोचिये, पिछले २४ घंटों में हनीफ़ के परिवार पर क्या बीती होगी? यहाँ तक कि हम-आप भी खुश हो लिए होंगे कि चलो दाग की इस चादर से एक धब्बा तो हटा! पर नहीं।

यह सवाल मुझे काफी समय से मथता रहा है। विशेष रुप से हिंदी समाचार चैनलों पर इस समय खबर के नाम पर क्या क्या परोसा जा रह है, सोच कर ही आश्चर्य और दुःख होता है। राशि-फल, खौगोलिक घटनाओं के प्रभाव, अपराधों के नाटकीय रूपांतरण .... यह पत्रकारिता का कौन सा अध्याय है?

और मैं हूँ कि सिर्फ गलत खबरों पे आँसू बहा रहा हूँ!!

शुक्रवार, 6 जुलाई 2007

आग

( 4 जुलाई को नागालैंड के ३ जिलों में नागा विद्रोहियों ने १० से भी ज़्यादा सरकारी स्कूलों में आग लगा दी। दर्जन भर से ज़्यादा समाचार चैनलों वाले इस देश में यह खबर मुझे मिली बीबीसी की हिंदी सेवा से! शायद किसी अखबार के पृष्ठ १२ पर इस का ज़िक्र हो गया हो!)

सपने कुछ कल
क्यूँ भस्म हुए?
कुछ रस्ते कल
क्यूँ ख़त्म हुए?

कुछ तन-मन कल
क्यूँ दहल गए?
कुछ जीवन कल
क्यूँ बदल गए?

कल धुँआ उठा
क्यूँ कक्षा से?
यह बैर है
कैसा शिक्षा से?

तुम जिससे भी
लड़ते हो सैनिक,
कैसी भी जिद पे
अड़ते हो सैनिक.

मैं नहीं समझता
क्या प्रण है ये,
पर मासूमों से
कैसा रण है ये.

पर कर-बद्ध
निवेदन है ये,
एक बार मिला
जीवन है ये.

अपना तो तुमने
नष्ट किया,
एक पूरी पीढ़ी को
भ्रष्ट किया.

पर बच्चों को तो
अब पढ़ने दो,
उनको तो जीने दो,
आगे बढ़ने दो।

बुधवार, 4 जुलाई 2007

नव युग

सृष्टि बनेगी
कुरुक्षेत्र ,
जीवन युद्ध,
चिर परिचित
कौरव पांडव।

संदेश, पुरातन
अक्षर, नूतन
सदा ध्वंस पर
उगेगा दिनकर
अवशेषों पर
होगा कलरव॥