सोमवार, 5 नवंबर 2018

पटाख़े चलाइये, हिन्दू धर्म बचाइये

दीवाली आने वाली है. इसके पहले कि कोई आपको बोले कि पटाख़े मत चलाओ मैंने सोचा आपको पहले ही सावधान कर दूँ कि ऐसे एंटी-नेशनल लोगों के बहकावे में मत आइयेगा। 

अभी आप पूछेंगे ये एंटी-नेशनल कैसे हो गये? तो जी मेरी मर्ज़ी।अभी एंटी-नेशनल बनने के लिए कोई डिग्री थोड़ी न चाहिये (वैसे अगर पीएचडी है और वो भी 'ऑर्टस' सब्जेक्ट्स में तो एक्स्ट्रा वेटेज मिलेगा और अगर आप जे.एन.यू. से हैं तो बस माथे पे लिखवाना बाकी है). 

मुद्दे पे वापिस आते हैं. तो जी दीवाली पे पटाख़े चलाना हमारी परंपरा है. अभी कोई वाल्मीकि या तुलसीदास बोलेगा कि दीपावली पर भगवान् राम के आने पर लोगों ने दिए जलाए तो इसका ये मतलब थोड़े ही है कि पटाख़े नहीं चलाये।ये कुम्हारों द्वारा फैलाया गया झूठ है. हम भी दिए मोमबत्ती जलाते हैं कि नहीं जलाते मित्रों। फुलझड़ी जलाने के लिए कोई तो आग का सोर्स चाहिए ना. अयोध्या वालों ने जो पटाख़े चलाये थे कि विभीषण ने मन ही मन सोचा था कि ठीक है अनंत काल तक मेरा नाम बदनाम हो गया पर इन लोगों के साथ दोस्ती हो गयी. अगर कहीं राम का दिमाग फिर जाता और यही पटाख़े वो लंका में चला देते तो लंका की लंका लग जाती!

और जो लोग कहते हैं कि पटाखों का आविष्कार चीन में हुआ ऐसे लोगों को तो बस पाकिस्तान भेज देना चाहिए। रामानन्द सागर की रामायण में वो लड़ाई वाले सीन याद हैं कि भूल गए? एक तरफ से लक्ष्मण तीर चलाते थे, दूसरी तरफ से मेघनाद। कैसी मनोहर आतिशबाज़ी निकलती थी दोनों से। वाह वाह. ये चीन वाले क्या खा के ऐसी आतिशबाज़ी का अविष्कार करेंगे!
और सारी दुनिया को पता है कि रामानन्द सागर की रामायण ही असली रामायण है तो अगर उसमें दिखाया था तो सच ही होगा ना। 

अब जो लोग बोलते हैं कि प्रदूषण होगा तो ऐसी कौन सी आफत आ रही है प्रदूषण से. आ भी रही है तो आने दो! कोई बोल रहा था कि डॉक्टर लोग बोले कि एक पटाख़े से ५० सिगरेट के बराबर धुंआ शरीर में जाता है तो भाई इससे अच्छी बात कुछ हो सकती है क्या? ५ पैकेट का खर्चा बचा कि नहीं। अब बस किसी तरह पीने का भी इंतज़ाम हो जाता तो दिवाली के दिन धरती पर ही स्वर्ग का आनंद आ जाता! और जो लोग कहते हैं कि पटाखों में होने वाले केमिकल्स से छोटे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है तो जी बुरा असर तो टीवी का भी पड़ता है. उसको भी बैन कर दें क्या? और अगर थोड़ा ज़्यादा बुरा असर पड़ भी गया और थोड़े बच्चे और बूढ़े एक दो साल जल्दी मर भी गए तो देश की जनसँख्या के लिए अच्छा ही है ना. कभी तो देश के लिए भी सोचा करो. हमेशा अपनी ही चिंता लगी रहती है!

और व्हाट्सऐप पर बुआ जी ने बताया है कि दिवाली के पटाखों की गंध और धुएं से डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छर मर जाते हैं. लो जी लाइफ़ में और क्या चाहिये! आगे से ये आल आऊट और मार्टीन फेंक कर सोने से पहले बस एक सौ वाली लड़ी जलाइए और चैन से सोइये. पैसे बचाने में पटाखों के योगदान पर रिसर्च होनी चाहिए।

तो बस सुप्रीम कोर्ट की ऐसी तैसी करिये, २४ घंटे पटाख़े चलाइये। हिन्दू धर्म वैसे भी खतरे में है, पटाख़े चला कर धर्म का नाम रोशन कीजिये।