शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

हंसिया चाँद

(पूनम का चाँद तो सब को लुभाता है, लेकिन चाँद हर दिन तो एक जैसा नहीं रहता. ये कविता उस चाँद के नाम जो अमावस के बाद निकलता है, और उतना खूबसूरत हो न हो, होता तो हमारा इकलौता चाँद ही है ना!)

आज रात है
हंसिया चाँद,
इतराता शर्माता
रंग-रसिया चाँद.

बिछी बिसात पे
प्यादे जैसा चाँद,
एक कमज़ोर
इरादे जैसा चाँद.

मुरझाई छुई-मुई
की डाली चाँद,
गुनगुनी चाय की
प्याली चाँद.
  
सच कहो तो ये है
बस नाम का चाँद,
पर जो भी है,
यही है हर रहीम और
हर राम का चाँद।।

(हंसिया = sickle)

  

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

दोस्त

 
कुछ भूल गए,
कुछ याद रहे.
कुछ बिछड़ गए,
कुछ साथ रहे.

कुछ सुने हुए से 
किस्सों से,
कुछ बुने हुए से
हिस्सों से.

कुछ गैरों के,
कुछ अपनों के.
कुछ सच्चे और
कुछ सपनों से.

कुछ फिर मिलने
के वादे थे
'टच' में रहने के 
इरादे थे.

फोन में नंबर
अभी भी हैं,
बर्थडे रिमाइंडर
अभी भी हैं.

पर एक अनदेखा
सा दुश्मन है
शायद वो मेरा
अंतर्मन है.

बढ़ता हूँ,
रुक जाता हूँ.
सच कहूं तो,
अहम् के आगे
झुक जाता हूँ.

शायद इसीलिए..
कुछ भूल गए,
कुछ याद रहे.
कुछ बिछड़ गए,
कुछ साथ रहे.