बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

तुम

आज मैं
मैं नहीं,
तुम भी
तुम ना रहो।
सब कुछ
चाहता हूँ सुनना
कुछ भी ना कहो।

पास बैठो,
सपनों की कहानियां
सुनाऊँ मैं
तुम भी अपनी यादों की।
कोई और बात ना हो,
बस बातें करें
बातों की।

साँसों में बसा लूं
तुम्हारे साथ
बिताया हर पल।
हर पल
एक ज़िन्दगी सा लगेगा
ज़िन्दगी जब
ख़त्म होगी कल।

आज पास रहो
साथ रहो,
आखें करें बातें
हम तो बस सुनें.
बैठें
गुपचुप, खामोश,
और सपने बुनें।