सोमवार, 26 जुलाई 2010

बी जे पी की इतनी आलोचना क्यूँ होती है?

हिंदी ब्लॉगर जगत के प्रबुद्ध लोग अपनी बुद्धि लगाएं इसके पहले ही साफ़ कर दूं कि ना तो मैं बी जे पी का समर्थक हूँ और ना कांग्रेस का। बी जे पी की आलोचना होती है तो सही ही होती है, उनके 'सुकर्मों' का यही फल मिलना भी चाहिए। अभी ज्यादा विस्तार में जा कर हर एक मुद्दे की विवेचना नहीं करना चाहता, लेकिन बी जे पी की हाल की हरकतों, खासकर झारखंड, कर्नाटक और गुजरात के मुद्दों पर केंद्रीय नेतृत्व के रुख से कोई ज्यादा उम्मीदें नहीं जगतीं कि सरकार बनाने के बाद वो देश का कायाकल्प कर देंगे!

इस पोस्ट का मूल विषय ये है भी नहीं। बी जे पी की आलोचना कई बार सरकार को कठिन मुद्दों पर भी ठीक से ना घेर पाने की वजह से हुई है। आतंरिक कलह इसका एक कारण है, लेकिन दूसरा कारण भी ध्यान में रखना चाहिए। विपक्ष सरकार को तभी घेर सकता है जब वो एकजुट हो। बी जे पी की अगुवाई में विपक्ष का एकजुट होना लगभग असंभव है। मंहगाई के मुद्दे पर भारत बंद करने सारी पार्टियां आ ज़रूर गयी थीं, पर अगले ही दिन सब में क्रेडिट लेने की होड़ भी लग गयी थी ! बी जे पी अपनी विचारधारा की वजह से अलग पड़ जाती है तो इसमें पूरे विपक्ष की गलती है, सिर्फ बी जे पी को दोष देना गलत होगा।

दूसरी बात, राष्ट्रीय मीडिया अधिकतर सिर्फ कांग्रेस और बी जे पी को ही कवर करता है। कांग्रेस की आलोचना, सरकार की आलोचना के खाते में चली जाती है! दिग्विजय सिंह जब चिदंबरम पर कटाक्ष करते हैं तो ये कांग्रेस के अंतर्कलह नहीं, 'सरकार के अंतर्विरोध' होते हैं। वैसे भी चाटुकारों की इस जमात में जगनमोहन रेड्डी जैसे ज्यादा पात्र हैं नहीं। मैडम और राजकुमार तो युधिष्ठिर के रथ पर सवार हैं जो भूमि से २ इंच ऊपर चलता है। उनके बारे में कोई कुछ लिखता नहीं, क्यूँ कि शायद कोई ख़ास ज्यादा जानता ही नहीं, और जानकर न लिखने की वजह वो है जो मैं सोचता हूँ.

कई लोग इसमें 'स्यूडो सेकुलरिज्म' और 'राष्ट्रवाद' जैसे बड़े बड़े कारण खोजेंगे पर मुझे तो यही लगता है, कि वैसे भी सरकार के विरोध में मीडिया ज्यादा बोलता नहीं। याद कीजिये कि इसी मीडिया ने 'इंडिया शाइनिंग' जैसे विज्ञापन के आधार पर दोबर वाजपायी सरकार बनने की भविष्यवाणी कर दी थी.तब ये बी जे पी के समर्थन में कुछ भी बोलते थे , आज काँग्रेस के समर्थन में बोलते हैं. इसलिए बी जे पी की डगर थोड़ी और मुश्किल हो गई लगती है, लेकिन मीडिया की आलोचना, मत दाताओं के मन पर कितना प्रभाव डाल पाती है, ये देखने वाली बात होगी!