दरअसल "वो" मरा नहीं, मार डाला गया। उसका नाम ललित मेहता था, आई आई टी रुड़की से इंजीनियरिंग की थी और विदेश जा कर मोटे वेतन पर काम करने के बजाये, वापिस बिहार के पलामू जिले में जा कर ग्राम स्वराज अभियान नाम की एक सामाजिक संस्था के साथ काम करने लगा। पलामू में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और जांच की मांग की। जांच से एक दिन पहले छतरपुर में उसको सदा के लिए शांत कर दिया गया! कोई और नाम याद आए क्या? कोई सत्येन्द्र दुबे या मंजुनाथ जैसे नाम?
और मैं क्यूँ मर रहा था? दरअसल में कोशिश कर रहा था कि किसी तरह से यह ख़बर राष्ट्रीय मुद्दा बने। राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना में कितना ज़बरदस्त भ्रष्टाचार है, यह किसी से छुपा नहीं है। इसीलिए में एनडीटीवी और सीएनएन-आईबीएन तक यह ख़बर पहुँचाने की कोशिश कर रहा था। एन डी टी वी के संजय अहिरवाल ने बताया कि यह ख़बर उनका चैनल एन डी टी वी इंडिया दिखा चुका है। सी एन एन - आई बी एन के राजदीप सरदेसाई ने कहा कि ख़बर मैं उनके चैनल के विनय तिवारी को भेज दूँ। खैर यह सब तो हो गया।
और यही सब मैं प्रदीप को बता रहा था, कि अब इसको फ़ोन किया, अब इसको एस एम् एस भेजा जब उसने कहा "अरे भाई वो मर गया है, तुम क्यूँ मर रहे हो?" बात सही भी थी।
उससे मेरा क्या सम्बन्ध था? संबंध छोडिये कभी नाम भी नहीं सुना था। और बिहार में तो हमेशा ही किसी न किसी की हत्या होती रहती है। क्या हर किसी के मरने या मारे जाने की ख़बर लेकर में ऐसे ही टीवी चैनलों के पास दौड़ता रहूँगा? पर क्या करूं प्रदीप, तुम्हारी नेक सलाह मेरी समझ में नहीं आती।
ऐसे ही किसी दोस्त ने ललित, सत्येन्द्र और मंजुनाथ से भी यही कहा होगा लेकिन उन्होंने भी नहीं सुनी किसी की। लेकिन मैं नहीं चाहता कि फ़िर कोई और नाम जुड़े इस लिस्ट में। और वैसे भी मैं मर नहीं रहा.