सोमवार, 16 दिसंबर 2019

ये कहाँ आ गए हम

(रितुपर्णा चटर्जी के ट्वीट्स का हिंदी अनुवाद: https://twitter.com/MasalaBai/status/1206386825838772226)

ये दिन अचानक नहीं आया, धीरे धीरे नींव रखी गयी है. उनको ये पता है कि जनता की नैतिकता बहुत लचीली है और इसीलिये हर दिन थोड़ा थोड़ा करके, जनता को आज़माया गया कि वो बिना टूटे कितना बर्दाश्त कर सकती है. उन्होंने छात्रों की छवि देश के दुश्मनों जैसी बना दी और आपने तालियां बजायीं।

जब पहली बार उन्होंने टीवी चैनलों को अपना मुखपत्र और ऐंकर्स को अपनी कठपुतली बनाया तब आपने मीम्स बनाये. जब उन्होंने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रात के अँधेरे में घर से गैर कानूनी तरीके से उठा कर जेल में ठूंस दिया और उनके गुर्गों ने उन्हें आतंकवादी करार दे दिया तब आपने उनका यकीन कर लिया.

जब पहली बार उन्होंने हमसे हमारा पैसा छीन लिया तब हमने अखबार के पन्ने इस कदम को 'मास्टरस्ट्रोक' साबित करने में रंग दिए और सबको बड़े गर्व से बताया कि हम तो 'कैश' का इस्तेमाल करते ही नहीं क्यूंकि हम कोई छोटे व्यापारी या दुकानदार नहीं थे जिसके लिए ये जीने मरने की बात थी!

जब पहली बार उन्होंने सिनेमा घरों में घुस कर अपनी 'आहत भावनाओं' का हवाला दे कर तोड़ फोड़ की, आपने उन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी। जब पहली बार उन्होंने किसी को राष्ट्र गान के लिए खड़े नहीं होने पर मारा तब आपको लगा ऐसे 'देशद्रोहियों' के साथ यही सलूक होना चाहिए.

पानी नाक तक आ गया था जब पहली बार उन्होंने आतंकवाद की एक अभियुक्त को चुनाव में खड़ा कर दिया मगर तब आपने पूछा कि 'सबूत कहाँ है?'. और जब पहली बार उन्होंने किसी को सरेआम पीट पीट कर मार डाला तब आप को 'दुःख तो बहुत हुआ' लेकिन गऊ माता के नाम पर आपने ये सब स्वीकार कर लिया!

जब पहली बार उन्होंने इंटरनेट बंद किया, सेना को सड़कों पर ले आए, एक आदमी को जीप पर बाँध कर घुमाया तब तक आपको भीड़तंत्र की आदत पड़ चुकी थी और आपको इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा. आपके मन में यही आया कि 'जो लोग देश से प्यार नहीं कर सकते उनके साथ यही होना चाहिए'

जब पहली बार उन्होंने आपका बायोमीट्रिक डाटा लेना और सारे सवालों को दरकिनार करना शुरू किया तब तक आप उनके आज्ञाकारी मातहत बन चुके थे. 'फेसबुक को डाटा दे सकते हैं तो देश को क्यों नहीं?' आपने ये नहीं सोचा कि देश और सरकार में फर्क होता है पर अब तक ये सोचने के लिए बहुत देर हो चुकी थी!

जब सत्ताधारी पार्टी के लोगों पर हत्या और बलात्कार के आरोप लगे, आपको कोई फर्क नहीं पड़ा। पड़ता भी क्यों, पीड़ित आपके परिवार का कोई सदस्य थोड़े ही था.

जब पहली बार उन्होंने स्कूल की किताबों में बदलाव किये, हज़ारों करोड़ों की मूर्तियां बनायी, शहरों के नाम बदले आपके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। आपने तो 'विकास' के लिए वोट दिया था ना, ये सब तो चलता है.

एक बात समझ लीजिये कि आपकी ये संवेदनहीनता बहुत ही चालाकी और सावधानी से तैयार की गयी है, और बाकी सब कुछ अपने आप हो रहा है!