शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

दिलासा

भगवान विष्णु की आँख अभी लगी ही थी कि कानों में 'नारायण नारायण' की आवाज़ पड़ी.

माता लक्ष्मी से अभी इन्वेस्टमेंट को लेकर थोड़ी बहस हुई थी और भगवान का मूड थोड़ा खराब था. बात कुछ ख़ास नहीं थी, वही टिपिकल मेल एटीट्यूड। पत्नी इन्वेस्टमेंट बैंकर ही क्यों न हो, रुपये पैसे के मामले में पति उसे हमेशा गंवार ही समझता है. लक्ष्मी जी कह रही थीं कि आयल फ्यूचर में इन्वेस्ट करते हैं, 4 -5 साल भले ही लग जाएँ , अप्प्रीशिएट तो होगा ही. ये सारी एस यू वी कारें सोलर सेल पे तो चलने से रहीं। विष्णु जी गोल्ड बांड की दलील दे रहे थे. बस थोड़ी गरमा-गर्मी हो गई.

"अरे यार, 10 मिनट कोई चैन से बैठने नहीं दे सकता." विष्णु जी इस समय नारद के आने से थोड़े से इरिटेटेड से हुए. फिर सोचा कि चलो आने दो. थोड़ी गपशप हो जाएगी तो मूड फ्रेश हो जाएगा। थोड़ा स्टॉक्स वगैरह भी डिस्कस कर लूँगा।

"नारायण नारायण। प्रणाम प्रभु" नारद ने अभिवादन किया.

"आइये नारद. क्या समाचार लाये हैं?" भगवान ने "और सुनाओ " वाले अंदाज़ में कहा.

"प्रभु आपके ऊपर जो केस हुआ था..."

"मेरे ऊपर केस हुआ था??? कौन सा केस? नारद आज सुबह सुबह ही सोमरस पान कर लिया क्या?" भगवान उठ कर बैठ गए. शेष नाग ने भी आँखें और कान खोल लिए!

नारद को अचम्भा हुआ. पिछली बार आया था तब बताया तो था इनको कि सीता को त्यागने के मामले में बिहार में भगवान राम पर मुकदमा दर्ज़ हुआ है. लगता है आजकल प्रभु मेरी बातें ठीक से नहीं सुनते!

"भगवन, आपको स्मरण होगा कि मैं तो ब्रह्मचारी हूँ, सोमरस का पान तो दूर, दर्शन तक नहीं करता. आपको वसंत पंचमी वाले दिन बताया था ना कि भारत वर्ष के बिहार प्रांत में.."

भगवान को याद आ गया. "अरे हाँ हाँ , याद आया. अब फंक्शन वाले दिन ये सब बताओगे तो कहाँ याद रहेगा। खैर क्या हुआ उसका? अभी ये मत बोलना कि मुझे लेने के लिए धरती से दूत भेजे हैं"

नारद "हें हें" वाले स्वर में बोले, "नहीं प्रभु, भारत वर्ष में वकील भले ही कूढ़ मगज़ हों, न्यायाधीश थोड़े ठीक हैं. वो केस रद्द कर दिया गया है. किन्तु अब हनुमान जी को लेकर एक नयी समस्या उत्पन्न हो गयी है."

भगवान ने लम्बी साँस ली और "पका दिया यार" वाले स्वर में बोले "श्रीलंका वाले पहाड़ की चोरी का आरोप लगा रहे हैं क्या? जो है वो तो इन लोगों से संभलता है नहीं, जो नहीं है उसके लिए मरते रहते हैं "

"अरे नहीं प्रभु. श्रीलंका के साथ कोई समस्या नहीं है. उसके लिए तो बस बी.सी.सी.आई को एक टी-20 श्रंखला का आयोजन करना होता है और सारी समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं. हनुमान जी पर सरकारी भूमि पर अवैध कब्ज़े का आरोप है"

शेषनाग को हनुमान से ख़ास प्यार नहीं था. कौन भगवान का ज़्यादा ख़ास है, इसको लेकर दोनों में ठनी रहती थी. ये खबर सुन कर उनके दिल को ठंडक मिली।

लेकिन भगवान चकरा गए. "अवैध कब्ज़ा? अर्थात अतिक्रमण? हनुमान ने कोई अखाड़ा वगैरह खोल दिया है क्या किसी एम.एल.ए. की ज़मीन पर? इन लोगों को कितना भी समझाओ कि शांति से मंदिर में रहो और चढ़ावे से पेट भरो लेकिन नहीं। सबको अपना 'पैशन फ़ॉलो' करना है. करो अब!"

नारद ने भगवान को अपसेट होते हुए देखा तो झट से सिचुएशन डिफ्यूज़ करने लगे. "नहीं प्रभु, हनुमान जी की कोई त्रुटि नहीं है. मंदिर ही सड़क के बीच में बना दिया गया है. वो बेचारे तो स्वयं ही वायु और ध्वनि प्रदूषण से त्रस्त हैं. प्रशासन ने उन्हें मंदिर छोड़ने का आदेश दिया है पर उनके नाम पर राजनीति करने वाले उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहे."

भगवान को इस राजनीतिक दल के बारे में नारद पहले भी बता चुके थे लेकिन वो राजनीति में पड़ना नहीं चाहते थे. पहले ही धरती पर उनके नाम पर भीषण रूप से वीभत्स राजनीति चल रही थी. उन्हें डर था कि अगर उन्होंने जनता को समझाने की कोशिश की तो कहीं उन्हें भी वही नाम और विशेषण ना दे दिए जाएं जो विरोधियों को दिए जाते थे.


"अब ये कोर्ट कचहरी के विषयों में आप और हम क्या कर सकते हैं, नारद! हमें तो ऐसा लगने लगा है कि इस पूरे देश के विषय में अब हम कुछ भी करने में असमर्थ हो गए हैं. जाइए, हनुमान से कहियेगा कि चिंता न करें, कोई न कोई समाधान निकल ही आएगा।" ऐसा कहकर भगवान ने आखें मूँद लीं.

और नारद हनुमान जी को एक झूठा दिलासा देने चल दिए.