आज सुबह अखबारों में पढ़ा कि जेनेवा में बिग बैंग प्रयोग के बारे में इंडिया टीवी की ख़बर से एक १६ वर्षीया इतनी भयाक्रांत हुई कि दुनिया के अंत से पहले उसने अपने जीवन का अंत कर लिया। दुखद ख़बर थी, दुःख हुआ।
लेकिन अगर डर के आगे जीत है तो दुःख के आगे फायदा है!
आपने मनोज नाईट श्यामलन की 'द हैपनिंग' देखी है? इस फ़िल्म में प्रदूषण से त्रस्त हो कर पेड़ पौधे हवा में ऐसा रसायन छोड़ने लगते हैं कि लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति जाग उठती है। अब देखिये इंडिया टीवी की खबरों
में भी वही खासियत झलकने लगी है। ख़बर देख के लोग आत्महत्या करने लगते हैं। (मेरे घर में तो खैर ये चैनल आता नहीं, वरना ये ब्लॉग लिखने के लिए मैं जिंदा न रहता!)
अब सोचिये तो ये थर्ड डिग्री के लिए कैसा रहेगा? हवलदार चोर से कहेगा "बता कहाँ माल छुपा के रखा है वरना अभी इंडिया टीवी के आगे बिठा दूँगा", चोर झट से माल का पता बता देगा। पत्नी को नया हार चाहिए और पति ने नहीं दिलाया तो उसके घर आते ही इंडिया टीवी लगा देगी और पति को हार कर हार दिलाना ही पड़ेगा!
वैसे थर्ड डिग्री से थोड़ा नीचे सेकंड डिग्री का भी इंतजाम है। स्टार न्यूज़! इंडिया टीवी जितनी क्षमता तो खैर नहीं है इसमे लेकिन सर दर्द या पागलपन के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है। मेहमान घर से नहीं टल रहे? सिंपल। टीवी पर स्टार न्यूज़ लगाइए फ़िर देखिये मेहमान भले ही फेविकोल का जोड़ लगा के बैठे हों, कैसे नहीं भागते!
कह नहीं सकता कि इससे पागलपन का इलाज सम्भव है या नहीं, एक प्रयोग यहाँ भी कर के देखा जाए.
ये आईडिया पेटेंट करवाना चाहिए, कल को ग़लत हाथों में पड़ गया तो दुःख ही दुःख रह जाएगा, फायदा किसी और को मिलेगा!