मंगलवार, 30 जून 2015

कुछ भूले कुछ याद रहा

अरसा हो गया कुछ लिखे. हिंदी में तो और भी ज़्यादा.

कभी कभी अपने ही पुराने ब्लॉग पढता हूँ, अच्छे भी लगते हैं. सोचता हूँ फिर से कुछ लिखूं पर लिखा नहीं जाता. पता नहीं क्यूं.

खुद को धोखा भी देना मुश्किल नहीं होता.

"समय नहीं मिलता"
"ऑफिस में बहुत काम है"
"बेटी छोटी है, बैठने ही नहीं देती"

और भी तमाम ऐसे बहाने. सारी ज़िन्दगी ही बहानों से भर गयी है. हर हार के लिए, एक बहाना तैयार मिलेगा. अक्सर सोचता हूँ, कि वो सब जो खो दिया है, वापस लाऊंगा पर क्या और कैसे, इन सवालों के जवाब ही नहीं होते.

और वास्तव में विकर्षणों की कमी नहीं है पर विकर्षित होना तो अपनी कमज़ोरी है.

कुछ तो करना पड़ेगा। बचपन में अपनी लिखी कविताओं की एक डायरी जला दी थी, पता नहीं किस धुन में आ कर. इस ब्लॉग को तो जला नहीं सकता, लेकिन इसको भूल जाना वैसा ही कुछ हो जाएगा!

अपने आप से ये वादा करता हूँ. फिर से लिखूंगा. कई बार ऐसा होगा जब शब्द दिमाग से उँगलियों तक आने से मना कर देंगे पर फिर भी कुछ न कुछ तो लिखूंगा ही.