गुरुवार, 27 मई 2010

५०० वर्ष पुराना राजगोपुरम ध्वस्त. हम कब चेतेंगे?

आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित १५वीं शताब्दी में बने कलाहस्ती मंदिर का गोपुरम कल ध्वस्त हो गया। दक्षिण भारत के मंदिरों के प्रवेश द्वार को गोपुरम कहा जाता है और गोपुरम का महत्व मंदिर से कम नहीं माना जाता। ध्वस्त गोपुरम को महाराजा कृष्णदेवा राय ने अपनी मंदिर यात्रा के समय बनवाया था।


मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archilogical Survey of India) के तत्वाधान में था। मंदिर के आसपास बोर वेल की अंधाधुंध खुदाई की वजह से हैं वर्षों में गोपुरम में दरारें पड़ गयी थीं और हाल ही में वर्षा की वजह से दरारें और भी गहरी हो गयी थीं। एक ही दिन पहले इस पूरे क्षेत्र को खतरनाक बताते हुए दुकानें भी खाली कराई गयी थीं। मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति की जाती रही और नतीजा सामने है!

(पढ़िए किस तरह आन्ध्र प्रदेश में ऐतिहासिक इमारतें नष्ट हो रही हैं)

ये तो सिर्फ एक और हादसा है। हैदराबाद में कुतुबशाही मकबरों के पुनर्निर्माण का ठेका एक ऐसे ठेकेदार को मिला है जिसको इस काम का कोई अनुभव नहीं है, वरन वो सड़क निर्माण का काम करता है। मकबरों के आसपास के पेड़ काट दिए गए, भारी मशीनों के इस्तेमाल से मकबरों की नींव हिल गयी! कुछ ही साल पहले बहनजी ने ताज गलियारा (Taj Corridor) बनवाने के चक्कर में यमुना का रास्ता बदल दिया था जिससे ताजमहल को खतरा पैदा हो गया था। दिल्ली में भूमिगत मेट्रो के निर्माण से हुमायूं के मकबरे को नुकसान पहुँचने की आशंका है। और अपनी सबसे बड़ी और ज़रूरी नदियों को तो हमने नाले में बदल दिया ही है!


कुछ लोगों के लालच और अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से अगर हमारी ये धरोहरें ऐसे ही खँडहर बनती रही तो बहुत जल्दी ही जिस सभ्यता और संस्कृति की हम हर जगह दुहाई देते हैं, उसका नाम भी नहीं बचेगा!

शुक्रवार, 21 मई 2010

शुभ विवाह से लक्ष्मी जी आउट!

ये शादी के कार्ड्स पर "शुभ विवाह" क्यूँ लिखते हैं?

कोई "अशुभ विवाह" भी होता है क्या? जो अशुभ होता भी है तो विवाह के बाद ही होता है, शुरू शुरू में तो शुभ ही शुभ होता है! अपवाद के तौर पर झारखंड में बी जे पी और जे एम एम के बीच का गठबंधन ध्यान में आता है, जिसकी शुरुआत ही अशुभ थी। मैं तो कहूँगा कि शुरुआत से पहले ही अशुभ होने के संकेत थे जो सिवाए बी जे पी के सबको दिख रहे थे।

खैर। "शुभ विवाह" से आगे बढ़ो तो गणेश जी मिलते हैं। मुझे गणेश जी से कोई दिक्कत नहीं है, अच्छे आदमी हैं बेचारे, डिज़ाईनर और प्रिंटर जहां जैसे फिट कर देते हैं, हो जाते हैं। लेकिन असल बात: लक्ष्मी जी को क्यूँ भूल जाते हैं सब? कोई कुछ भी कहे शादी ब्याह में तो लक्ष्मी जी का जितना आवागमन होता है, वो किसी से छुपा नहीं है। वधू पक्ष से वर पक्ष को जाने वाली बात को इग्नोर कर भी दें तो भी जितना ताम-झाम होता है, उसके लिए लक्ष्मी मैया की कृपा ही काम आती है। और तो और शादी में वर-वधू (और उनके रिश्तेदारों) को जो लक्ष्मी जी के वाहन (उल्लू!) की तरह जागरण करना पड़ता है उसका क्या? गणेश जी तो मजे से कार्ड पे फिट हो जाते हैं और अपने वाहन (चूहे) को सामान का सत्यानाश करने पीछे छोड़ जाते हैं!

लक्ष्मी जी को इस मामले को सीरियसली लेना चाहिए और अपने यथोचित सम्मान की डिमांड करनी चाहिए। बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि नारी मुक्ति वालों को लक्ष्मी जी के सपोर्ट में मोर्चा-वोर्चा निकालना चाहिए, जन-जागरण अभियान चलने चाहिए।

मुझे उम्मीद है, आने वाले समय में लक्ष्मी जी मेरी इस सेवा से खुश हो कर मुझे यथोचित ईनाम देंगी!