अब तक आपने 'पिंक चड्ढी कैम्पेन' के बारे में तो सुना/पढ़ा होगा ही, कईयों ने तो कुछ पिंक न सही लाल पीली भेज भी दी होंगी। आज पता चला कि श्री राम सेना चड्डियों के बदले साड़ियाँ भेज रही है।
मैं तो कहता हूँ कि इस साल ५-६ बार वैलेंटाइन डे मना लेते हैं, देश का ज़बरदस्त तरीके से भला होगा! कैसे?
अब देखो देश भर में राम सेना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदे जाएंगे, हजारों की संख्या में। राम सेना साड़ियाँ खरीदेगी, फ़िर से हजारों की संख्या में। टेक्सटाइल और कपड़ा उद्योग के हुए न वारे न्यारे! अब ये सब सामान भेजा जाना है तो उसके लिए कुरियर कंपनियों की ज़रूरत पड़ेगी। इतना सामान, सोचो कितना पैसा!
ये तो हुआ डाइरेक्ट वाला फायदा, इनडाइरेक्ट वाला और भी लंबे समय तक चलने वाला है।
श्री राम सेना ने कहा कि अगर जोड़ों को पकड़ा गया तो शादी करा देंगे। शादी तो इस देश का सबसे बड़ा रिसेशन प्रूफ़ धंधा है। २ लोग शादी करते हैं, २००० लोगों की रोजी चलती है! (वैसे कहीं ये शादी वाला एंगल शादी बिजनेस वालों के कहे पर तो नहीं लाया गया है? देखना पड़ेगा।) लेकिन मैरेज ब्यूरो और शादी वाली वेबसाइट्स के पेट पर तो लात पड़ेगी।
वैसे एक ज़बरदस्त आईडिया। अगर आपका परिवार आपकी प्रेमिका या प्रेमी को पसंद नहीं करता और आपके 'बाबूजी' ने कह दिया है कि "उस घर में तेरी डोली (या तेरी घोड़ी!) उनकी लाश पर ही चल कर जाएगी" तो इस दिन बिंदास अपने प्रेमी/प्रेमिका के साथ निकल जाइए और पूरी कोशिश कीजिये कि आप इन बंदरों, मेरा मतलब है राम सैनिकों (अब राम की सेना में तो बन्दर ही थे न) की नज़र में आ जाइए। बस बाबूजी की लाश का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं!
(वैसे प्रमोद मुतालिक और उनके बन्दर किसी जंगल में ही रहें तो बेहतर है। न तो हमारे शहरों में इनके लिए जगह हो और न ही हमारे मन में!)
पढ़ें मंगलौर घटना के असली हीरो के बारे में। क्या आप पवन शेट्टी को जानते हैं?
4 टिप्पणियां:
वैसे प्रमोद मुतालिक और उनके बन्दर किसी जंगल में ही रहें तो बेहतर है। न तो हमारे शहरों में इनके लिए जगह हो और न ही हमारे मन में!
--यही सही है. बाकी तो मस्त मस्त!
ha ha ha...sahi kaha.
सही कहा अभिषेक जी, बधाई.....
भई वाह्! बहुत खूब कही........लेकिन जंगल तो अब खत्म होने की कगार पे हैं. क्यूं न चिडियाघर ही भेज दिया जाए. लोग टिकीट खरीदकर देखने आएंगें तो इसी बहाने कुछ तो सरकारी खजाने में बढोतरी होगी.
एक टिप्पणी भेजें