चलो अब मेनका गांधी खुश होंगी। इतने साल से बेटे का कैरियर बनाने में लगी थीं, कुछ हो नहीं रहा था। कोई नाम तक नहीं जानता था।
लेकिन अब घर घर में बेटा चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। राजनीति में सही तरीके से अब पदार्पण हुआ है। भड़काऊ भाषण बाज़ी, पकड़े जाने पर झूठ बोलना और फ़िर हिंदुत्व का सहारा लेकर ख़ुद को बेक़सूर साबित करना। बी जे पी के पास इतने दिन से कोई युवा नेता नहीं था, चलो अब एक तो मिल गया।
टी.वी चैनल भले ही भाषण पर आँखें तरेर रहे हों लेकिन, लगातार कवरेज़ कर के उन्होंने एक और नरेन्द्र मोदी पैदा कर दिया। अभी ही हिंदुस्तान टाइम्स में पढ़ा कि पीलीभीत की जनता का ध्रुवीकरण (पोलराईजेशन) हो चुका है, जैसे मोदी साहब ने गुजरात का किया है। ibnpolitics.com पर एक समय जहाँ इन 'नेता जी' का प्रोफाइल तक नहीं था, अब ५०००० से ज़्यादा लोगों ने उनको वोट किया है (लगभग २५००० उनको पसंद करते हैं और लगभग १६००० नापसंद)। शायद यही वजह थी कि पहले तो हो-हल्ले से घबरा कर पार्टी ने ख़ुद को भाषण और भाषण देने वाले से अलग रखने की कोशिश की लेकिन वो बहुत जल्दी समझ गए कि 'बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा' और तुरंत ही इन श्रीमान को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया!
जो लोग इनको पसंद करते हैं वो इनके भाषण को भूल कर इनकी प्रेस कांफ्रेंस में कही गयी बातों को तवज्जो देते हैं। ये हिंदू हैं, भारतीय हैं और गांधी हैं। सबसे बड़ी बात कि नेता हैं। इनकी कही हर बात को सुनाने दिखने के लिए १५० चैनल और ५० अखबार हैं और बेवकूफ बनकर आपस में लड़ मरने के लिए ११० करोड़ हिन्दुस्तानी। अभी ४ महीने पहले ही २६/११ के बाद हम सबने कसमें खाई थीं कि अब जाति-धर्म नाम पर नहीं लडेंगे, एक रहेंगे और ऐसे नेताओं को और ऐसी बंटवारे की राजनीति को ख़त्म करेंगे। और अब हम 'पढ़े-लिखे' कल्चर्ड लोग फ़िर से कठपुतली बन कर नाचने को तैयार हैं।
किस मुंह से नेताओं को गाली देते हैं हम जब हम ख़ुद ही ऐसी दोगली बातें करते हैं।
नेता जी की जेल यात्रा: बेल की अर्जी, शहादत का अंदाज़!
7 टिप्पणियां:
आपसे पूर्ण सहमति आप वाकई दोगली बातें करते हो
आपको गालियां देने का कोई हक ही नहीं है
आप पढे लिखे लोग तो कठपुतली शुरू से ही हो, नाचते ही रहते हो
मैं देख रहा हूँ की आप के विचार नरेन्द्र मोदी के बारे में कुछ वैसे ही है जैसे की किसी आम आदमी की है जिसे कुछ लिखना या बोलना है. नरेन्द्र मोदी की टिका करना बहुत ही आसन है, और आसान है मोदी से जोड़ना हर एक मुद्दा की जो मुस्लिमो की धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुंचता हो. और क्यों नहीं, देख के बुध्धिजीवियों जे माहोल ही कुछ ऐसा खडा किया है है की हिन्दुओ और हिंदुत्ववादियों को टारगेट करना आसन है. सब लोग सहमत भी तुंरत हो जायेंगे. फुल्ली इन कोम्फिर्ट ज़ोन.
दिर्भाग्य पूर्ण, पर वोह मोदी नहीं, गुजरात की जनता थी. देखने के बात तो ये थी की जो मीडिया दंगो के बाद मोदी को घोर तरीके से कोसा, गोधरा की ट्रेन जलने की घटना तो जैसे रोज़ होती है वैसे बयां किया.
ऑर दूसरी बात, २६/११ की. मुझे नहीं पता चल रहा, उस घटना का हिन्दू मुस्लिम एकता से क्या लेना देहा है.
बिल्कुल योगी, मैं एक आम आदमी ही हूँ और किसी आम आदमी की तरह ही बोलने और लिखने की आज़ादी रखता हूँ। रही बात मोदी की टीका करने की, तो अगर मुझे लगता है कि मोदी साहब जो कर रहे हैं वो ठीक नहीं है, तो मैं टीका करूंगा। और शायद आप और 'गुजरात की जनता' सुप्रीम कोर्ट के बातें सुनती नहीं जिसने गुजरात के दंगों की जाँच के बारे में क्या क्या कहा। मैं उन सब बातों के विस्तार में जाना नहीं चाहता।
मैं ये ज़रूर मानता हूँ कि तमाम तथा-कथित बुद्धिजीवियों ने हिंदुवादियों को टारगेट किया है, लेकिन मुझे लगता है कि ये तभी होता है जब ये हिंदूवादी अन्य धर्मों, विशेष कर मुस्लिमों के विरुद्ध बोलते है या हिंसा करते हैं। क्यूंकि हिंसा के ज़रिये मीडिया में छाना ज़्यादा आसान होता है। और फ़िर आप जैसे तमाम हिंदू इनको अपना तरफदार भी मान लेते हैं!
रही बात २६/११ की तो मुझे आश्चर्य नहीं है कि आप को बात समझ में नहीं आयी। हिंदू-मुस्लिम एकता की बात गुजरात में थोडी कम ही होती है!
मेरी नाराज़गी है उनसे जो जबरदस्ती किसीको किसी धर्मं से संलग्न करते है. एक बार मोदी की सरकार रहेते अगर दंगे होगे तो बस? वोह कभी सेकुलर हो ही कही सकता? मोदी अगर किसी मुस्लिम बालिका को स्कूल भेजने के इंतजाम करता है तो वोह कहीं नहीं पढ़ने को मिलेगा. लेकिन अगर वह किसी मुस्लिम आतंकवादी को मार गिराने की हिमायत करता है तो तुंरत सब कोई कलम और कैमरा लेके तैयार हो जाते है. मोदी ने सड़के बड़ी करने के लिए सेंकडो मंदिर गिरा दिए ये किसी को नज़र नहीं आता. लेकिन जिस दिन वडोदरा मे एक मज्जिद को गिरना हो तो कोर्ट का आर्डर भी काम कही आता और उस कारण हुई सारी ज़ड़प सरकार कि गलती करार दी जाती है.
अगर सही चीज़ करना दुसरे लोगो कि नज़र मे धर्मनिरपेक्षता के मुलभुत सिध्धांतो के खिलाफ है तो वही सही. और शायद यही महत्तम गुजरातियों का सोचना है. वो मुर्ख या हिंसक नहीं है.
"लेकिन अगर वह किसी मुस्लिम आतंकवादी को मार गिराने की हिमायत करता है" जिस "मुस्लिम आतंकवादी" की आप बात कर रहे हैं, वो आतंकवादी था भी या नहीं यह सोचने की ज़रूरत नहीं है? जब हर तरफ़ से ये बात साबित हो गयी अमुक पुलिस अफसर ने एक बेगुनाह को आतंकवादी कह कर मरवा डाला तब 'मुस्लिम आतंकवादी' की थ्योरी आ गयी? अगर कोई इन सब गलतियों को सामने लाये तो वो ग़लत, वो सूडो सेकुलर हो जाता है? "एक बार मोदी की सरकार रहेते अगर दंगे होगे तो बस? वोह कभी सेकुलर हो ही कही सकता?" हो सकता है, लेकिन इतने साल होने के बाद भी अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसी बातें कह रही हो, तो मोदी साब पर भरोसा थोड़ा मुश्किल है!
मैं मुस्लिम तुष्टिकरण के बिल्कुल ख़िलाफ़ हूँ। मैं सिर्फ़ यही कहता हूँ कि कानून सबके लिए बराबर हो। अगर सड़क चौडी करने के लिए मस्जिद गिराने पर बवाल हो तो ये ग़लत है और फ़िर मोदी साब क़ानून का उचित इस्तेमाल करें तो वही सहीं हैं, इसमें बहस की कोई गुंजाईश नहीं।
sorry for not writing in Hindi. Read the blog and comments too.
I don't have much idea about politics and what political fronts are doing but the current scenario is to select good out of worst.
rahi baat hindu-muslim ke, to gaawar log kise bhi dharam ke ho ladenge he !
इस चर्चा का अंत नही! आश्चर्य नही की कई लोग एनकाउंटर के खिलाफ हो.
बस मैं यही कहूँगा की बड़ी बाते बोलना और करना सिर्फ गाँधीजी ही जानते थे और सफल हुए (सिवाय पाकिस्तानाका निर्माण), कुछ लोग आज भी एनकाउंटर का शोर्ट-कट लेते है.
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