दोनों बातों की वजहें आप समझ ही गए होंगे। क्यूंकि ये पढ़े लिखे 'सभ्य समाज' के लोग वोट नहीं करने जाते।
एक बात हमको समझनी पड़ेगी। बात उसी की सुनी जाती है जिसकी कोई हस्ती होती है। नेताओं के लिए हमारी जान की कोई कीमत नहीं है, उनको सिर्फ़ अपनी घटिया और गन्दी राजनीति ही करनी है तो फ़िर ठीक है, हमको अपने वोट की कीमत पहचाननी होगी। अगर नेताओं के लिए सिर्फ़ वोट बैंक का ही मोल है तो हमको वोट
एक बात हमको समझनी पड़ेगी। बात उसी की सुनी जाती है जिसकी कोई हस्ती होती है। नेताओं के लिए हमारी जान की कोई कीमत नहीं है, उनको सिर्फ़ अपनी घटिया और गन्दी राजनीति ही करनी है तो फ़िर ठीक है, हमको अपने वोट की कीमत पहचाननी होगी। अगर नेताओं के लिए सिर्फ़ वोट बैंक का ही मोल है तो हमको वोट
बैंक बनना पड़ेगा। नेताओं को समझाना पड़ेगा कि उनके घटियापन का जवाब हम अपने वोट के ज़रिये दे सकते हैं।
इसलिए ये एक नया आन्दोलन: Be Votebank. Be Heard.
६ राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, अधिक से अधिक लोग वोट दें, सभ्य समाज के लोग अपने आप को, अपने अस्तित्व को, अपनी राय को और अपने जीने के अधिकार को वोट के माध्यम से बढ़ा चढ़ा के बताएं। इसलिए ये पहल।
नीचे दिए गए किसी भी लोगो को अपने ब्लॉग/साईट पर लगाएं और अपने मित्रों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें।
जो बोट से आए वो तो एन एस जी के कमांडो ने मार दिए, जो वोट से आते हैं, उनको तो हमें संभालना पड़ेगा न!
(यह पोस्ट अंग्रेज़ी में यहाँ)
नीचे दिए गए किसी भी लोगो को अपने ब्लॉग/साईट पर लगाएं और अपने मित्रों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें।
जो बोट से आए वो तो एन एस जी के कमांडो ने मार दिए, जो वोट से आते हैं, उनको तो हमें संभालना पड़ेगा न!
(यह पोस्ट अंग्रेज़ी में यहाँ)
7 टिप्पणियां:
जो बोट से आए वो तो एन एस जी के कमांडो ने मार दिए, जो वोट से आते हैं, उनको तो हमें संभालना पड़ेगा न
सच कहा आपने सहमत हूँ
regards
सही कह रहे हैं । हमारा सबसे बड़ा काम वोट देना है । वोट न देकर हमने अपना महत्व खो दिया इसीलिए कोई भी राजनैतिक दल हमारी सुनता नहीं है ।
घुघूती बासूती
भैया किस मुगालते में हो… दक्षिण मुम्बई के लोग वोट क्यों डालेंगे यार? जब उनके पास इतना पैसा है कि वोट लेने वाले कई-कई सांसद उनकी जेबों में पड़े हैं… भाई पैसे वालों को न तो वोट डालने की जरूरत है न ही वोट बैंक की, उनके लिये तो "बैंक बैलेंस" ही काफ़ी है…
सुरेश जी, बात तो सही है आपकी, पर ये न भूलें... की इस बार निशाना वो लोग भी थे जिनके पास पैसा है - ताज जैसी जगहों पर रहने वाले |
जिसे अपनी फ़िक्र है, अपने समाज की फ़िक्र है, वो तो वोट करेंगे ही | अगर अब भी वोट की कीमत को नहीं पहचाना तो फ़िर इसकी कीमत नहीं समझ पाएंगे ये लोग | हमें सिर्फ़ नेताओं को ये दिखाना कि हम (आम जनता) क्या कर सकते हैं |
फर्श से अर्श पर भी हमने ही इन्हें बिठाया है, अब इनको वापिस भी हमें ही उतारना होगा |
bahut sahi kah rahe hain. hame bhi vote bank banna hi padega.
http://jaagore.com/
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकियों के खतरे के बावजूद ६२% मतदान होता है और हमारी दिल्ली में सिर्फ़ ६०%? क्यूँ भाई? और ६०% भी पिछले साल की तुलना में ६% ज़्यादा है। क्यूँ ये बाकी ४०% लोग नहीं निकले वोट देने?
मुख्तार अब्बास नकवी हों या आर आर पाटिल, सब के असली रंग अब दिख रहे हैं, जनता जब अपना हक मांगती है तो विलेन बन जाती है। अब भी अगर इन लोगों को लाइन पर नहीं लाये तो बहुत देर हो जाएगी।
आप सब का धन्यवाद। फ़िर से निवेदन है कि किसी भी लोगो या बैनर को अपने ब्लॉग/साईट पर लगाएं और इस आन्दोलन को और बढ़ाएं।
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