कभी यूँ भी तो हो!
तारों की महफ़िल हो, कोई न मेरे साथ हो , और तुम आओ। कभी यूँ भी तो हो!
शुक्रवार, 28 नवंबर 2008
रिक्त
शब्द, आंसू और क्रोध अब कुछ नहीं बचा है इस मन में।
रिक्त हो गया है ये अब तो।
क्या कहूँ, किससे कहूं!
हर कन्धा तो आंसुओं से भीगा हुआ है।
(चित्र
आभार
)
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