रविवार, 24 अगस्त 2008

मेरे पैर का लिम्फोसर्कोमा ऑफ़ द इनटेस्टाइन

हाँ जी हमको भी पता है कि लिम्फोसर्कोमा ऑफ़ द इनटेस्टाइन पैर में नहीं होता, सर में होता है। 'मुन्ना भाई एम बी बी एस' हमने भी देखी है, उसमे वो सीन है न जिसमे संजय दत्त सिर का एक्स-रे देख के बताते हैं कि बचने का कोई चांस नहीं है, इसको लिम्फोसर्कोमा ऑफ़ द इनटेस्टाइन हो गया है! मैं तो कहता हूँ जी, कि ये डॉक्टर बेकार ही ५ साल झक मारते हैं, हमें देख लो, फिल्में देख देख के ही इत्ती बड़ी बिमारी का ज्ञान हो गया।

वैसे एक बात सच्ची बोलें, हमको पैर में लिम्फोसर्कोमा ऑफ़ द इनटेस्टाइन नहीं हुआ है, लेकिन अगर हम पहले सच बता देते कि हमारे पैर में 'प्लान्टर फाआइटिस' हुआ है तो आप मेरी यह (पैर)दर्द भरी दास्ताँ पढ़ते? नहीं पढ़ते!

तो जी जब हम्पी से हम लंगडाते हुए वापिस हुए, तो पैर डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी हो गया। दर्द बहुत ज़्यादा था, लेकिन सूजन न होने की वजह से यह तो लगभग पक्का था कि कुछ टूटा फूटा नहीं है। लेकिन जब एक बार के २०० रुपये लेने वाले डॉक्टर ने एक्स-रे तक के लिए नहीं कहा, और बस कुछ पेन किलर दे के हमें टरका दिया तो मानो बिजली गिर पड़ी! २०० रुपये भी गए और डॉक्टर ने ढंग से देखा तक नहीं। इतना दुःख तो तब भी नहीं हुआ था, जब एक बार अंगूठे के दर्द के लिए डॉक्टर ने दांत के ऑपरेशन के लिए कहा था।

बहरहाल जब दूसरी बार इस डॉक्टर ने बिना कुछ वजह बताये यह कहा कि ठीक होने में २-४ महीने लग सकते हैं, या शायद कभी भी ठीक न हो तो मैंने 25o रुपये फीस वाले डॉक्टर को दिखाने का फ़ैसला किया। आप यकीन नहीं करेंगे कि जब मैं इस क्लीनिक से निकला तो कितना खुश था। डॉक्टर ने बताया कि मुझे प्लान्टर फाआइटिस हुआ है और सिर्फ़ इक्सारसाईज़ ही इसका इलाज है। वो तो उसने एक और लंबा सा नाम बताया था, पर वो समझ में ही नहीं आया। जी तो किया कि बोलें भइया एक बार फ़िर से बोलना तो, रिकॉर्ड कर लें! और कुछ इन्फ्लेशन जैसा बोला, बाद में समझे कि वो इन्फ्लेशन नहीं, 'फ्लामेशन' था.

कब से दिल में अरमान था कि एक लंबे नाम वाली बीमारी हो, जिसको चार लोगों के बीच बताएँ तो लगे कि हाँ भाई हमारा भी कुछ स्टेटस है। फ़िज़िओथेरेपी वगैरह जैसे अमीरों वाला इलाज हो, भले ही फ़िज़िओथेरेपी के नाम पे गरम पानी में नमक डाल के सिकाई ही करनी हो. दिल में खुशी का ठिकाना नहीं था, कि हमको कोई मामूली चोट, मोच नहीं लगी है। बड़ी बीमारी है जो सिर्फ़ ख़ास लोगों को लगती है।

इसके बाद तो हमने नेट खंगाल डाला, इसके बारे में जानकारी इकठ्ठा करने के लिए। डॉक्टर की बताई बातों के अलावा भी जो सही लगा वो सब कर रहे हैं।

लेकिन जब से लंगड़ाना बंद हुआ है, कोई पैर के बारे में पूछता ही नहीं है, हम बीमारी के बारे में बताएँ भी तो किसको। अब लंबे नाम वाली बीमारी का हम करें क्या। कोई फायदा ही न हुआ।

तो अब आपका ये फ़र्ज़ बनता है कि हमारी सेहत के बारे में पूछो, पैर के बारे में पूछो, इलाज के बारे में भी पूछो। किसी फ़िल्म डाइरेक्टर से जान पहचान हो तो हमारी बीमारी पर भी फ़िल्म बन सकने का चांस हो तो बताओ। कमीशन वमीशन का अपन बाद में देख लेंगे।

देश में प्लान्टर फाआइटिस और अन्य लंबे नाम वाली बीमारियों के लिए काफ़ी स्कोप है! लिम्फोसर्कोमा ऑफ़ द इनटेस्टाइन काफ़ी कॉमन हो गया है न..

3 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

सच में भाई नयी बीमारी ले आए हो....पिक्चर न सही मेडिकल जर्नल में छाप दे ...फोटो समेत

Unknown ने कहा…

good ast ..Mast likhte ho.Ab ise padhne ke baad kuchh log to jaroor puchh hi lenge ki Abhishek aapka pair kaisa hai,bahut dinon se aapne haal chaal nahi diya. :)

good one.

Praveen राठी ने कहा…

बात तो सही है |
राजकुमार ने अपने अन्तिम दिनों में न कहा था,"हम राजकुमार हैं | हमें कोई छोटी मोटी बीमारी हो तो जंचता नहीं | हमें तो कैंसर ही सूट करता है |" बीमारी का नाम छोटा था, लेकिन बीमारी तो बड़ी ही थी न |

वैसे अभिषेक, अब कैसा है तुम्हारा पैर? :)