शनिवार, 30 अगस्त 2008

क्यूँ छोड़ दिया है इस देश ने बिहार को?

'बाढ़ में अब लोगों की दिलचस्पी नहीं रही!' मधेपुरा से एन डी टी वी इंडिया के संवाददाता रवीश कुमार कह रहे थे, कि महानगरों में बिहार की इस आपदा के प्रति उदासीनता की शायद यही वजह है। पानी और लोगों से घिरे रवीश बार बार यही पूछ रहे थे कि क्या हो गया है इस बार कि ऐसी भीषण त्रासदी को इस देश ने लगभग सिरे से दरकिनार कर दिया है।

समझ में तो मुझे भी नहीं आ रहा। ४० लाख लोग बाढ़ की वजह से बेघर हो गए हैं। यूँ तो बाढ़ हर साल आती है, हर बार १-२ महीने के लिए लोग घरों को छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर जाते हैं, पर इस बार शायद लौटने के लिए कोई घर ही नहीं बचेगा। हर रोज़ लोग मर रहे हैं, अभी भी हजारों लोग घरों की छतों पर फंसे हुए हैं, कई लोगों तक किसी तरह की राहत नहीं पहुँची है पर न जाने क्यूँ मीडिया के लिए यह ख़बर अभी से बासी हो गयी है। भाषाई मीडिया तो हर राज्य में सिर्फ़ अपने प्रदेश की हदों तक ही सीमित होना जानता है, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया का क्या? २४-घंटे चलने वाले हिन्दी भाषी न्यूज़ चैनलों को क्या हुआ? शायद आज तक, इंडिया टीवी और स्टार न्यूज़ जैसे चैनल किन्हीं पंडित जी या तांत्रिक को खोज रहे होंगे जो बाढ़ की वजह 'शनि महाराज का प्रकोप' बताएँ!

और शायद इसी वजह से देश की जनता के लिए इतनी बड़ी विपदा सिर्फ़ ढाई मिनट का समाचार बन कर रह गयी है और उन ४० लाख लोगों का दर्द अनजान!

न इसबार कहीं से कोई सहायता की अपील हो रही है, न कहीं धन/कपड़े /खाद्यान्न/नाव आदि दान करने की। कुछ हो रहा है तो वही जो हर बार होता है, राजनीति, दबंगई और बयानबाजी! तो जहाँ प्रभावित जिलों में दबंगों द्बारा नावों पर कब्ज़ा किए जाने की खबरें हैं और राहत शिविरों में चोरी और ख़राब भोजन दिए जाने की शिकायतें हैं वहीं राजधानी पटना में नेताओं के बयानों की सीडी अखबारों के दफ्तर तक नियमित पहुँच रही हैं।

लेकिन वीकएंड मनाते बाकी देश को क्या फर्क पड़ता है. नीचे देखिये 'देश की सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ वेबसाइट' पर बाढ़ की एकमात्र ख़बर कैसे दी गयी है:

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