मेजर राज्यवर्धन राठौर उस प्रतियोगिता के फाइनल में जगह नहीं बना सके जिसमे उन्होंने चार साल पहले रजत जीता था। उनको भी मालूम है कि कितनी ज़्यादा उम्मीदें उन पर टिकी थीं! कल अभिनव बिंद्रा के शानदार प्रदर्शन के बाद हर कोई सीना फुला के बोल रहा था, अरे अभी तो राठौर का खेलना बाकी है। हमने पहले ही मान लिया था कि कम से कम सिल्वर मैडल तो अपना ही है, बस राठौर का शूटिंग रेंज में उतरना भर बाकी है।
लेकिन हर दिन एक समान नहीं होता। कल जहाँ खुशी के आँसू थे, आज निराशा के हैं। पढ़ा कि मेजर राठौर अपने भविष्य में खेलने पर फ़िर से विचार करने की बात कह रहे हैं। मुझे पता नहीं, कि वो भविष्य में फ़िर से निशानेबाजी के लिए ओलंपिक में जाएंगे या नहीं, किसी भी और प्रतियोगिता में शिरकत करेंगे या नहीं पर जो भी हो, मुझे सिर्फ़ एक बात कहनी है।
राठौर साब आप मेरे हीरो तब भी थे जब आपने एथेंस में सिल्वर जीता था और आज भी हैं और हमेशा रहेंगे। निशाना कभी सही होता है, कभी नहीं होता है। माना किआपसे जितनी उम्मीदें थीं आप उन पर खरे नहीं उतर सके। लेकिन चार साल इतना लंबा अरसा नहीं होता कि हम वो दिन भूल जाएं जिस दिन हमें एक नया नायक मिला था। बहुत सारी उम्मीदें ख़त्म ज़रूर हो गयी हैं, पर उन उम्मीदों को जन्म भी तो आपने ही दिया था।
उन सब उम्मीदों के लिए ही सही, आप मेरे हीरो रहेंगे!
1 टिप्पणी:
चलता है भई. हीरो तो रहेंगे ही. हार जीत तो लगी रहती है.
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