गुरुवार, 7 अगस्त 2008

इस देश का भगवान् भी भला नहीं कर सकते?

हर साल कोई न कोई ऐसा दौर ज़रूर आता है, जब हर तरफ़ से बुरी खबरों के सिवा सुनने को कुछ नहीं मिलता। लेकिन इतना बुरा और कठिन समय देश के लिए शायद पिछले कई वर्षों में नहीं आया होगा।
और हर चीज़ पर राजनीति! संसद में नोट हों या बम धमाके। रामसेतु हो या अमरनाथ भूमि। हर चीज़ पर राजनीति! (पढ़िये रवीश कुमार का लेख: शिवराज का जूता और सुषमा की बोली )
लोग मरते हो मरें, देश जलता हो जले, हमें तो बस हमारे वोट चाहिए। कैसे भी!

मौजूदा केन्द्र सरकार के राज में गृह मंत्रालय जितना लाचार, निकम्मा और बेबस नज़र आया है, उतना कभी आया होगा, मुझे तो याद नहीं पड़ता। सिमी पर प्रतिबन्ध हटने के जो कारण आज समाचार पत्रों में आए हैं उनसे साफ़ मालूम पड़ता है कि गृह मंत्रालय ने न्यायालय में इस मुद्दे पर बेहद लापरवाही दिखाई है। लगातार होते बम धमाकों और आतंकवादी संगठनों के साथ सिमी के बढ़ते रिश्तों के बाद भी उन पर कार्यवाही करने में सरकार का यह आलस अपराध से कम नहीं है!
और कल अमरनाथ मुद्दे पर सर्व-दलीय बैठक के बाद भी प्रेस को विदेश मंत्री प्रणव मुख़र्जी ने संबोधित किया। मुझे तो समझ नहीं आता, जम्मू कश्मीर से सम्बंधित कोई विषय विदेश मंत्रालय को क्यूँ संभालना पड़ रहा है। गृह मंत्री शिवराज पाटिल कहाँ थे? पाटिल जैसे अशक्त व्यक्ति को गृह मंत्रालय जैसा महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील मंत्रालय क्यूँ दिया गया है, इसका सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही जवाब है कि वो सोनिया गांधी के 'वफादार' हैं।

मैं सोनिया गांधी और उनके परिवार के भारत प्रेम पर कोई अविश्वास नहीं करता लेकिन उनको अब यह सोचना चाहिए कि इस बेहद कठिन दौर में जब देश अन्दर और बाहर हर तरफ़ से निशाने पर है, उन्हें वफादारी को ज़्यादा तरजीह देनी चाहिए या देश को।

सरकार के सहयोगी दल और भी महान हैं! मुलायम सिंह और लालू यादव के लिए सिमी और आर. एस. एस. एक समान हैं और उनके अनुसार तो सिमी पर प्रतिबन्ध होना ही नहीं चाहिए!

और बी जे पी के बारे में क्या कहा जाए! वाजपायी जी के हटने के बाद से यह पार्टी अपने ही अन्तर विध्वंस का शिकार है। आडवाणी को अब सिर्फ़ प्रधान मंत्री की कुर्सी ही नज़र आती है और देश-हित का विचार सिर्फ़ बातों में झलकता है। कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, तो सरकार को हर सम्भव मुद्दे पर घेरना है, भले ही इससे देश में साम्प्रदायिकता भड़के और दंगे हों। उनकी बला से! आख़िर अयोध्या के बाद कुछ तो चाहिए यू पी में मायावती से सीट बचाने के लिए।

नैना देवी मन्दिर में हादसे में १५० लोग मारे गए, गौतमी एक्सप्रेस में आग लगने से ३१ लोग जल गए, बिहार में ट्रक उलटने से ६५ मजदूर मारे गए...हे भगवान्।

पर सुप्रीम कोर्ट ने तो कहा कि 'इस देश का भगवान् भी भला नहीं कर सकते' तो फ़िर...

4 टिप्‍पणियां:

Anil Pusadkar ने कहा…

koi kuch nahi kar sakta

Nitish Raj ने कहा…

सच बात तो है जहां नेता वोट की गोली खेलते हों वहां जनता का भला क्या खाक होगा। इस देश का भला सिर्फ और सिर्फ कुछ सिरफिरे ही कर सकते हैं याने की ये जनता।

Udan Tashtari ने कहा…

अफसोसजनक....

Praveen राठी ने कहा…

लोग मरते हो मरें, देश जलता हो जले, हमें तो बस हमारे वोट चाहिए

ऐसा ही कुछ "नायक" फ़िल्म में अमरीश पुरी ने कहा था |

तो जी बात साफ़ है, नेताओं के लिए तो 'वोट बैंक' और 'नोट बैंक' ही सर्वोपरी हैं |