बचपन में माँ को
लिखी पहली चिट्ठी
कल मिली
धूल झाड़ी, पढी
यादों की नयी पोटली खुली।
याद आने लगा
बीता हुआ कल
दादी का लाड
और पापा की डाँट के
डर का हर पल।
गाँव का मेरा स्कूल
हर इक भूल
पर खींचे गए कान,
और वही दोहराने पर
पड़ी बेंत के निशान।
मम्मी से जिद करके
सावन के मेले में जाना
उंगली पकड़ के घूमना
और चौकी पे सीता
के पीछे बैठकर वापस आना।
छोटे छोटे से झगडे
छोटी छोटी सी बातें.
सुबह जल्दी उठती सुबहें,
रातों को देर तक टहलती रातें।
पहली चोरी!
ठेले से एक नीबू चुराया था।
और पकड़े जाने के
डर ने ही पकड़वाया था।
क्या क्या याद रखूँ,
क्या क्या भूलूं
जीं करता है कि
यादों के ढ़ेर कि
तह को छू लूं।
3 टिप्पणियां:
बस इन यादो का हिमालय बना के चढ़ाइ करते जाइए ज़नाब ।
सुजाता
it is a gr8 effort by u simply loved ur poems, and thnx for adding to to that trio of ur readers ...
sometimes i too think of penning down something but am too dumb for all this .. and i really do feel sad abt it.
Btw how do u write hindi ..
Good one!! Really wonderful
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