रविवार, 15 अप्रैल 2007

खुशियाँ

खुशियाँ
न कोई नाम
न चेहरा।
स्वतंत्र, निर्बाध
न ताला ना पहरा।
भोली भाली मासूम खुशियाँ
बड़े सुखों से महरूम खुशियाँ।

कचरे के ढ़ेर से छनती खुशियाँ
दिन भर थक कर चूर हुई
नींद के आगोश में तनती खुशियाँ।
आहिस्ते अनजाने
चुपके से, मनमाने
ढंग से बनती खुशियाँ।

टूटे मिटटी के खिलौनों में
बस्ती खुशियाँ
आंखों ही आंखों में हंसती खुशियाँ
माँ के आँचल को नींद में डूबे डूबे ही कसती खुशियाँ।

छोटी छोटी खुशियों से
खुश होती खुशियाँ,
खुली हवा में आजादी से
हंसती रोती खुशियाँ।

1 टिप्पणी:

Pravesh (Pravy) ने कहा…

Khushiya hi Khushiya!!
Hasti gaati, roti muskarati..

Jayahn dekho khushiya hi khushiya!!
:)