कभी यूँ भी तो हो!
तारों की महफ़िल हो, कोई न मेरे साथ हो , और तुम आओ। कभी यूँ भी तो हो!
शनिवार, 5 मई 2007
हैदराबाद की गरमी
सुबह सुबह ही भरी दुपहरी
सूरज दहके
लपटें बरसाये
कोयल का मन
क्यूँ कर बहके
क्यूँ वो चहके
क्यूँ गाये?
हवा गर्म है
धरा गर्म है
गर्म है नल का जल भी
कल ऐसा था
आज है ऐसा
क्या होगा ऐसा कल भी?
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