अब तो काफ़ी टाइम से विविध भारती तो क्या कोई हिन्दी स्टेशन नहीं सुना। यहाँ हैदराबाद में जब से रेडियो सिटी भी पूरी तरह से तेलुगु बन गया तब से रेडियो सुनना लगभग ख़त्म हो गया है।
करीब ८ साल हो गए हैं इलाहाबाद छोड़े हुए, और तभी से विविध भारती से नाता टूटा। नोएडा में तो आकाशवाणी के एफ एम चैनल आते थे और बाद में फ़िर रेडियो मिर्ची, रेडियो सिटी और रेड एफ एम जैसे नए स्टेशन शुरू हो गए थे। और सच कहूँ तो तब विविध भारती का छूटना कोई बुरा भी नहीं लगा। अब तो इलाहाबाद में भी बिग एफ एम शुरू हो गया है तो पता नहीं कितनी अभी भी विविध भारती सुनते होंगे!
इस चैनल के साथ मुझे प्रॉब्लम ये थी इस पर सिर्फ़ और सिर्फ़ पुराने गाने ही आते थे और किसी भी एंगल से ये मुझे अपना हमउम्र तो नहीं लगा कभी! हालांकि रात को ८.४५ पर रेडियो नाटिका और सन्डे के दिन विविधा मुझे बहुत पसंद थे और कमल शर्मा की ज़बरदस्त आवाज़ और अंदाज़ तो मैं शायद कभी नहीं भूल पाऊंगा। और भी कई कार्यक्रम मुझे काफ़ी अच्छे लगते थे. लेकिन समस्या थी पुराने गाने सो मेरा फेवरिट प्रोग्राम था 'चित्रलोक' सुबह ८.३० से ९.३० तक नयी फिल्मों के रेडियो विज्ञापन (८० के दशक के अंत और ९० के दशक की शुरुआत में रेडियो पर फिल्मों और राज कॉमिक्स के स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम याद हैं?) आते थे और फ़िर नए गाने भी। दूरदर्शन पर तो ऐसा कोई कार्यक्रम आता नहीं था, सो नयी फिल्मों और उनके गाने सुनने के लिए यही एक जरिया था मेरे पास!
लेकिन फ़िर जैसे जैसे केबल टीवी का विस्तार बढ़ा, चित्रलोक से फिल्मों के विज्ञापन और फ़िर नए गाने भी गायब होते गए। नए गानों के नाम पर ६-८ महीने पुरानी फिल्मों के गाने बजने लगे। विविध भारती के लिए वो भी खैर नया ही था!
आज अचानक से याद आ गयी।
2 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूब, चित्र लोक चित्रपट सब याद आने लगे... क्या टाइम था ,यार!
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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
भई याद है क्यों नहीं याद है ।
हम तो विविध भारती में ही हैं ।
और दिलचस्प तथ्य बताते हैं...एफ एम चैनलों की धूम धड़ाम के बीच जहां जहां एफ एम पर विविध भारती है...लोगों को राहत वहीं मिलती है ।
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