६१ वर्ष स्वतंत्रता के, ६००० वर्ष अस्तित्व के। भारत एक ऐसा देश है, जिसे शब्दों में विस्तृत नहीं किया जा सकता, और ६ चित्र होते ही कितने हैं! पर देखिये एक नज़र भारत को मेरे कैमरे की नज़र से।
इंडिया बनाम भारत

चमकती दमकती महँगी शॉपिंग मॉल से लेकर 'थोक भाव' वाली थोक बाज़ार, हर किसी के लिए हर चीज़ उपलब्ध है। बस देने के लिए दाम होने चाहिए। और यही उपभोक्तावाद है जो एक तरफ़ तो इंडिया को आसमान छूने का जोश और (आत्म-मुग्ध होने की हद तक) आत्म-विश्वास दे रहा है और दूसरी तरफ़ उसे अनजान बना रहा है भुखमरी, गरीबी और भ्रष्टाचार से जूझते भारत से!
३३ करोड़ या 'सिर्फ़' ३३ करोड़
करीब ११० करोड़ की आबादी वाले इस देश में पूजने के लिए आपको हर रंग-रूप, वेश भूषा, जाति धर्म के देवी देवता, साधू, संत, बाबा, पीर सब मिलेंगे। सड़क के बीचों-बीच 'समाधि' या 'मजार' होना तो बिल्कुल साधारण बात है, और किसी अधिकारी की मजाल नहीं कि इनको हटा सके। लेकिन जाति ,धर्म और मज़हब के नाम पर की गयी वोट बैंक की राजनीति ने इस देश को जितने ज़ख्म दिए हैं उनको भरने में वक्त को भी कितना वक्त लगेगा, कोई कह नहीं सकता!
देस मेरा रंगीला

किसी भी विदेशी से पूछिए, १० में से ९ बार, या सुनील गावस्कर की ज़बानी कहें तो १९ में से २० बार, जवाब होगा 'भारत के रंग'। इसे किसी भी नज़रिए से देखिये, विविधता तो है!
अरे हुज़ूर, वाह ताज बोलिए!

ताज महल 'प्रेम का प्रतीक' कभी रहा होगा, मेरी नज़र में तो ताज महल अब इन चीज़ों का प्रतीक है:
१) भारत में मोबाइल और इन्टरनेट का फैलता विस्तार: नहीं तो पिछले साल '७ अजूबों' में हमने इसे चौथा स्थान कैसे दिलाया?
२) लालच में अंधी और मूर्खता की राजनीति: मायावती ने अपनी जेबें भरने के लिए ताज महल को लगभग नष्ट कर डाला था।
३) मुश्किलों में भी शान से जीवन जीना: इतने धुएँ, प्रदूषण और मूर्ख राजनीतिज्ञों से घिरे होने के बाद भी ताज शान से खड़ा है!
आराध्य!

राज कपूर से ले कर रजनीकांत भारतीय सिनेमा ने लम्बी छलाँग लगाई है। और हाँ, मैं सिर्फ़ हिन्दी सिनेमा की बात नहीं कर रहा, हर भाषा के सिनेमा के अपने सितारे हैं, अपना एक वजूद है, सपने हैं और उन सपनो को देखने-दिखाने वाले हैं।
मुस्कान

इस फोटो को मैं किसी भी तरह से देख सकता था। यह तस्वीर उन लाखों बच्चों में से किसी की भी हो सकती है जो शिक्षा से वंचित और कम उम्र में काम करने को मजबूर हैं, विकास के कारण अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ते अन्तर की हो सकती थी, लेकिन मैं इस फोटो को देखता हूँ, उस बच्चे के चेहरे पर फ़ैली मुस्कान के लिए। मुस्कान जो कि उस मासूमियत, विश्वास और सपनों का प्रतीक है, जो अभी भी कुछ हद तक हमारे अन्दर बची है।
स्वंत्रता दिवस की शुभकामनाएं!