(पूनम का चाँद तो सब को लुभाता है, लेकिन चाँद हर दिन तो एक जैसा नहीं रहता. ये कविता उस चाँद के नाम जो अमावस के बाद निकलता है, और उतना खूबसूरत हो न हो, होता तो हमारा इकलौता चाँद ही है ना!)
आज रात है
हंसिया चाँद,
इतराता शर्माता
रंग-रसिया चाँद.
बिछी बिसात पे
प्यादे जैसा चाँद,
एक कमज़ोर
इरादे जैसा चाँद.
मुरझाई छुई-मुई
की डाली चाँद,
गुनगुनी चाय की
प्याली चाँद.
सच कहो तो ये है
बस नाम का चाँद,
पर जो भी है,
यही है हर रहीम और
हर राम का चाँद।।
(हंसिया = sickle)
आज रात है
हंसिया चाँद,
इतराता शर्माता
रंग-रसिया चाँद.
बिछी बिसात पे
प्यादे जैसा चाँद,
एक कमज़ोर
इरादे जैसा चाँद.
मुरझाई छुई-मुई
की डाली चाँद,
गुनगुनी चाय की
प्याली चाँद.
सच कहो तो ये है
बस नाम का चाँद,
पर जो भी है,
यही है हर रहीम और
हर राम का चाँद।।
(हंसिया = sickle)
1 टिप्पणी:
चाँद को न जाने कितने स्वरूपों में प्रस्तुत करती आपकी कविता..
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