कल कनुप्रिया को पिंग किया, उनकी माता जी के ब्लॉग का लिंक पूछने के लिए। इस माँ बेटी की जोड़ी की कहानी अपने आप में प्रेरणास्पद है.
एक हादसे में परिवार के एक सदस्य के असमय निधन के बाद जब आंटी की हिम्मत टूटने लगी थी, कनुप्रिया ने उनको एक बार फ़िर एक दिशा दी। उनको कंप्यूटर का इस्तेमाल कर के हिन्दी में लिखना सिखाया। शुरू में तो थोड़ा विरोध था,"क्या होगा लिख के" और "रहने दो... मुझे कुछ नहीं सीखना है" जैसी बातें, लेकिन जब एक इन्टरनेट पत्रिका में २ कविताएँ छप गयीं, तो यह शुरूआती बैरियर हट गया। (इसके बारे में पढ़िये कनुप्रिया की लेखनी में!)
आंटी ने न सिर्फ़ हिन्दी में लिखना सीखा, अब उनका अपना ब्लॉग भी है।
तो बस यही कह रहा था में कनुप्रिया से कि आंटी की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि उनमें सीखने का उत्साह है। इतनी जटिल चीज़ सीख रही हैं। एक मेरे पिता जी हैं कि उनको मोबाइल में एड्रेस बुक तक यूज़ करना नहीं आता, इतनी बार सिखाने की कोशिश की लेकिन वो सीखना ही नहीं चाहते।
तभी ये बात दिमाग में आयी, कि आज हम अपने माँ-बाप के बारे में वही कह रहे हैं जो कल कुछ साल पहले तक वो हमसे कहा करते थे "राहुल को देखो कितनी मेहनत करता है, और तुम हो बिल्कुल कोशिश भी नहीं करते हो।" कोशिश नहीं करोगे तो कैसे सीखोगे!"वगैरह वगैरह ...
वक़्त कैसे बदल जाता है न! आज हम जहाँ हैं, कल वहाँ हमारे माता-पिता थे और कल हमारे बच्चे होंगे। कल हमने जो कुछ सीखा था, कल हमसे कोई और सीखेगा और हम किसी और से कुछ और सीखेंगे!
और बस ज़िन्दगी का ये क्रम यूँ ही चलता रहेगा!
1 टिप्पणी:
मेरे नन्हे दोस्त,
कनुप्रिया के मार्गदर्शन से ही तुम तक पहुँच सकी हूँ.मैं टूट कर ख़त्म हो गयी होती अगर मेरे बच्चों नी मुझे सम्भाला नहीं होता .कनु तो सिर्फ मेरी बेटी ही नहीं मेरी माँ, दोस्त,गुरु अभिभावक सब है.तुम्हारे विचार जान कर बहुत खुशी हुई.हलोगों का सौ भाग्य है कि हमारे बच्चे हमें कुछ सीखाना चाहते हैं.हर नयी पीढी पुरानी पीढी के
कन्धों पर बैठी है इसलिए उसे अधिक दूर तक दिखना चाहिए.हमें उनकी योग्यता एवं क्षमता से अवश्य सीखना चाहिए.
किरण सिन्धु.
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