रविवार, 1 जून 2008

दारू के ठेके पे कोयल बोली

तो जी बात जे भई कि हमारे घर के पास जो 'बार-कम-रेस्टोरेंट' है (जो असलियत में रेस्टोरेंट कम बार ज़्यादा है) उसके 'बगीचे' में एक युक्लिप्टस का पेड़ है, उस पर बैठ कर कोयल गा रही थी (अच्छा एक बात बताओ, कोयल के बोलने को 'गाना' क्यूँ कहते हैं?)

छोटी सी बात है पर बड़े सवाल खड़े हो गए!

क्या ये पहली कोयल थी जो युक्लिप्टस के पेड़ पर बैठ के बोल रही थी? अगर हाँ तो क्यों? क्यों आज तक कोयलों ने इन मासूम पेड़ों के साथ भेदभाव किया? वैसे अगर इतिहास पर नज़र डालें तो कोयल को हमेशा अमराइयों में ही गवाया गया है। कभी सुना नहीं कि फलां कोयल अमरुद के पेड़ पर गाती पायी गयी या अमुक प्रेमी युगल उस नीम के पेड़ के नीचे मिलते थे जिसके ऊपर कोयल गीत गाती थी। किसी कवि ने तो यहाँ तक लिखा है कि आम की मिठास का कारण ही कोयल का गाना है। क्या बेवकूफी है, अगर ऐसा होता तो एक एक गन्ने के ऊपर तीन कोयलों को बैठ कर टेर लगानी पड़ती! कृषि मंत्रालय को इस कवि के विरुद्ध कोई एक्शन लेना चाहिए। कहीं चीनी मंत्रालय के किसी मूर्ख मंत्री ने इस बात पे यकीन कर लिया तो इतनी कोयलें कहाँ से आएंगी?

और अगर यह वाकई पहली कोयल थी जो युकेलिप्टस के पेड़ पर गाना गा रही थी तो क्या वजह थी इस कोयल ने अपने समाज की रीति रिवाज़ को छोड़ कर, आम के पेड़ों से नाता तोड़ कर इस पेड़ पर गाना स्वीकार किया? क्या इसकी वजह कोई प्रेम प्रसंग था (किसी दूसरे पक्षी के साथ, जो कोयल समाज के ठेकेदारों को नागवार गुज़र रहा था) या पेड़ के मालिकों ने कोयल को रिश्वत दी थी? या फ़िर कोयल का मानसिक संतुलन बिगड़ने की वजह से वो आम और युकेलिप्टस में अन्तर करना भूल गयी थी?

और अगर यह पहली कोयल नहीं थी जिसने ऐसा कदम उठाया (माने अपना छोटा सा पंजा उठाया) तो आज के पहले यह सवाल, सवाल क्यों नहीं बना? मीडिया ने इस सामाजिक परिवर्तन को हम सबसे क्यों छुपा कर रखा?कोयल समाज की इस क्रांति को दुनिया के सामने क्यों नहीं लाया गया?

बहरहाल अब यह बात मेरी नज़र में आ गयी है, आप फिक्र मत कीजिये। किसी हिन्दी 'समाचार' चैनल की तरह मैं इस ख़बर की तह तक पहुँच कर ही दम लूंगा। फ़िर कोयल क्या कौवा भी युकेलिप्टस के पेड़ पर नहीं गा सकेगा!

9 टिप्‍पणियां:

कुश ने कहा…

हा हा हा भई वाह मज़ा आ गया

L.Goswami ने कहा…

jab puri bat pata chal jaye jarur batayen.

Vaibhav Choudhary ने कहा…

काफी बढ़िया लिखे हो ... मतलब भी काफी साफ है.

बालकिशन ने कहा…

हा हा हा
:) :) :)
मज़ा आ गया
काफी बढ़िया लिखे हो
बधाई.

Yogi-at Meditation! ने कहा…

sundar ati sundar..arth to spast hai kintu apni mand buddhi ke karanvash bhavarth nahi samajh pa raha hoon, atah aap se nivedan hai ki sandarbh aur prasang par kuch prakash daalein

Abhishek Ojha ने कहा…

मेरे हिसाब से कोयल मधुर बोलती है और लय में बोलती हैं यानी दो 'कु' के बीच में बराबर अंतराल होता है. इसलिए गाना कहते हैं...

और करे क्या बेचारी आम के पेड़ अब बचे ही कितने हैं, और अब तो बंदरों की तरह कोयल भी शहरों में आ कर कहीं भी गाने लग गई है.... अभी तो कम से कम पेड़ था कल बस और ट्रकों पर भी जायेगी :-)

Udan Tashtari ने कहा…

अब चल पड़े हो तो वीर, तुम रुकना मत बिना समाचार चैनलों तक यह समाचार पहुँचाये. शुभकामनाऐं. :)

Praveen राठी ने कहा…

मैंने पकड़ लिया :)

इसके दो कारण हो सकते हैं:
१. शायद कोयल को पता चल गया की आज तक वो कौवे के अण्डों को सेती थी, तो उसने घर बदलने का विचार बनाया. मतलब ये कोयल काफी समझदार है.
२. हो सकता है ये कोयल मदिरापान करने के लिए दारू के ठेके पर आई हो. मतलब ये कोयल नशेडी है.

क्यों, तुम्हे कौन सी बात सही लगती है?

Waterfox ने कहा…

कुश भाई, लवली जी, वैभव, बाल किशन जी, समीर भाई बहुत धन्यवाद। आपको यह प्रयास अच्छा लगा, मेरी सफलता!

अभिषेक भाई आपने बिल्कुल सही कहा। अम्राइयां अब रही ही कहाँ कि कोयल अब वहाँ गाए। बदलते समय और बदलती दुनिया से समझौता करने में ही समझदारी है!

प्रवीन लगता है तुम्हारी नौकरी मुझे किसी न्यूज़ चैनल में लगवानी पड़ेगी। खोजी पत्रकारिता के कीटाणु तुम्हारे अन्दर कुलबुला रहे हैं। इन्फी से इस्तीफा दे दो.