साल का वो समय आ गया है जब मन करता है भाग के तोरा-बोरा की गुफाओं में (अरे वहीं जहाँ ओसामा भैया रहते हैं, जब मुशर्रफ़ साब के घर बिरयानी नहीं खा रहे होते) या फिर बाल ठाकरे के घर में छुप जाऊं! कहीं भी जहाँ अगले हफ्ते भर चलने वाली मीडिया की मिसाइलों से बच सकूं।
आने वाले पूरे हफ्ते हर टीवी चैनल, अखबार, रेडियो स्टेशन और इंटरनेट पोर्टल्स मेरे एकाकी जीवन का जी भर कर मखौल उडाएंगे! हाय वैलेंटाइन डे आने वाला है।
अखबारों में वैलेंटाइन डे के प्रारंभ से ले कर आज तक इसे मनाने के तरीकों पर तो लेख होंगे ही, साथ ही ग्रीटिंग कंपनियों के बढ़ते व्यापार के बारे में भी मनमानी संख्याएं होंगी! अच्छा चलो माना कि इनको नहीं देखोगे लेकिन होटलों, शॉपिंग माल, फिल्म थिएटर, गहने-जेवर की दुकानों के जो पन्ने भर भर के विज्ञापन आएंगे उनसे कैसे आंखें फेरेंगे आप? और हाँ यह सब सिर्फ 'जोड़ों' के लिए।
सभी टीवी कार्यक्रमों की कहानियाँ बे सिर पैर के घुमाव लेंगी ताकि वैलेंटाइन डे मनाया जा सके। यानी कि फिल्मी गानों के साथ बहुत सारे गुलाब और गुब्बारे! वैसे भी आजकल टीवी पर कहानी के नाम पर बचा ही क्या है। यह भी सही।
मगर कमाल तो करेंगे न्यूज़ चैनल! 'विशेष' और 'बड़ी खबर' तो आएंगे ही, हर शहर से सीधा प्रसारण: 'अब हम दर्शकों को लिए चलते हैं रोहतक जहाँ पप्पू सिंह, रिंकी खन्ना को गुलाब देने वाले हैं। हाँ दीपक कैसा माहौल है वहाँ...' (आगे तो आप समझ ही सकते हो!) शिव सेना, बीजेपी, विहिप, बजरंग दल आदि आदि के छुटभैयों की साल भर की उबासी कटेगी और उनसे भी कैमरा मुखातिब होगा। वो जोड़ों को चेतावनी देंगे और फिर कैमरे के सामने तोड़फोड़ का 'प्रदर्शन' करेंगे। (मुझे बड़ा मज़ा आता है जब टीवी कैमरे के सामने लोग पहले से टूटे गमले को लात मारते हैं, हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा!)
रेडियो स्टेशन श्रोताओं की कॉल लेंगे, उनके संदेश सुनाएंगे और उनके पसंदीदा गाने सुनाएंगे। आप तो जी बस घर बैठ के सुनते जाओ! (उसी दिन करें तो अच्छा है, हफ्ते भर किया तो मैं रेडियो फोड़ दूंगा!)
इन सबसे कोई तो बचाओ मुझे! प्लीज़। वैसे दूसरा तरीका भी है, (सिर्फ कन्याओं के लिए): मेरी वैलेंटाइन बन जाइए!
2 टिप्पणियां:
पूर्ण सहानुभूती है आपके साथ । परन्तु दूसरों की खुशी में खुश होओगे तो शायद वैलेन्टाइन मिल भी जाए । वैसे आपने अच्छा याद दिलाया । मैं भी इस दिन पर अपना लेख पोस्ट कर ही देती हूँ ।
घुघूती बासूती
टोकने के लिए माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन यह रोहतक दिमाग में कैसे आया.
मैं भी इस दिन किसी मांद में छिप जाता हूँ.
- राठी
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