( 4 जुलाई को नागालैंड के ३ जिलों में नागा विद्रोहियों ने १० से भी ज़्यादा सरकारी स्कूलों में आग लगा दी। दर्जन भर से ज़्यादा समाचार चैनलों वाले इस देश में यह खबर मुझे मिली बीबीसी की हिंदी सेवा से! शायद किसी अखबार के पृष्ठ १२ पर इस का ज़िक्र हो गया हो!)
सपने कुछ कल
क्यूँ भस्म हुए?
कुछ रस्ते कल
क्यूँ ख़त्म हुए?
कुछ तन-मन कल
क्यूँ दहल गए?
कुछ जीवन कल
क्यूँ बदल गए?
कल धुँआ उठा
क्यूँ कक्षा से?
यह बैर है
कैसा शिक्षा से?
तुम जिससे भी
लड़ते हो सैनिक,
कैसी भी जिद पे
अड़ते हो सैनिक.
मैं नहीं समझता
क्या प्रण है ये,
पर मासूमों से
कैसा रण है ये.
पर कर-बद्ध
निवेदन है ये,
एक बार मिला
जीवन है ये.
अपना तो तुमने
नष्ट किया,
एक पूरी पीढ़ी को
भ्रष्ट किया.
पर बच्चों को तो
अब पढ़ने दो,
उनको तो जीने दो,
आगे बढ़ने दो।
9 टिप्पणियां:
very panic ! ya i have heard many things about Naga's because my dad going to those places for audit ... bad time !
very tragic...i hadn't heard anything about it...v sad that this wasn't highlighted by indian media...useless...
Nice poem!! Now you have started sharing news even in poems :)
You can actually stop writing those blogs and start writing these poems.. :)
पर बच्चों को तो
अब पढ़ने दो,
उनको तो जीने दो,
आगे बढ़ने दो।
--बहुत खूब. एक सुन्दर संदेश पहुँचाती रचना ही सार्थक लेखनी है. बधाई और शुभकामनायें.
अभिशेक बहुत अच्छा लिखते हो...मेरी शुभ-कामनाए है तुम हमेशा एसे ही और अच्छा लिखते रहो...:)
सुनीता(शानू)
बहुत ही अच्छी कविता लिखी है। सचमुच उस दर्द और टीस को आपने महसूस किया और हमें भी करा दिया, जो उन बच्चों को हुई होगी
आप सभी का कोटिशः धन्यवाद. आपके शब्द बहुत प्रोत्साहित करते हैं!
बडी सार्थक कविता है..सुखद सन्देश देती हुयी.
अच्छा लिखा है.
शुभकामनायें बन्धु.
सचमुच आग है इस रचना में साथ संवेदना भी दिख रही है… वैसे भी संदेश देती कविता को पढ़ना ही दूसरा सा अनुभव देता है…।
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