रविवार, 4 अप्रैल 2010

मायावती के समर्थक जवाब देंगे क्या?

मायावती ने वही किया जो उनसे उम्मीद थी। हमेशा की तरह केंद्र सरकार की किसी भी योजना के लिए उत्तर प्रदेश के पास पैसे नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के पास अभी कुछ दिन पहले प्रतापगढ़ में भगदड़ में मरे लोगों को मुआवजा देने के लिए भी पैसे नहीं थे, (मुख्यमंत्री जी ने बी एस पी सांसदों से प्रधानमन्त्री को एक पत्र लिख कर ऐसी दुर्घटनाओं के लिए एक केंद्रीय कोष बनाने की मांग करने को कहा था!) और कुछ ही दिन बाद लखनऊ में बी एस पी की आलीशान रैली में २०० करोड़ रुपये खर्च किये गए थे.

और अब स्मारक, पार्क और मूर्तियाँ बनाने में १०००० करोड़ रुपये खर्च करने के बाद इनकी सुरक्षा के लिए एक विशेष सुरक्षा बल बनाने के लिए पैसे हैं लेकिन स्कूल बनाने और अध्यापक नियुक्त करने के लिए केंद्र सरकार से पैसे चाहिए।

मायावती की हर फिजूलखर्ची पर उनके समर्थक पुरानी घटनाओं का हवाला देते हैं जैसे सरकारी फिजूलखर्ची एक प्रथा है जिसका निर्वहन करना मायावती की मजबूरी है और ऐसी बातों की आलोचना की असल वजह मायावती का दलित होना है। ये 'दलित की बेटी' का पर्दा मायावती जी काफी समय कर चुकी हैं और अब ये साफ़ है कि उनके समर्थक सिर्फ उनके हितैषी हैं दलितों के नहीं। मायावती के पास एक अच्छा मौका था कि वो दिखा देतीं कि एक दलित महिला मुख्यमंत्री कितना अच्छा काम कर सकती है, जो दलित इतने साल से शोषित थे उनके विकास के लिए कुछ करतीं। लेकिन उन्होंने सिर्फ अपने अहंकार को संतुष्ट करने वाले काम किये और हर बात को दलितों के सम्मान से जोड़ दिया।

उत्तर प्रदेश में मायावती का विरोध करना पत्रकारों के लिए भारी पड़ता है इसलिए उत्तर प्रदेश का मीडिया भी उनके किसी भी तानाशाही कदम के खिलाफ कुछ नहीं कहता। लेकिन अब देखने वाली बात है कि माया समर्थक उनके इस नए शिगूफे का बचाव कैसे करते हैं।