गुरुवार, 9 अगस्त 2007

शाम-ए-अवध

कभी सुना था कि लोग कहते थे मुस्कुराइये कि आप लखनऊ में हैं! अब तो टेंपो के धुंए और सत्ताधारी दलों के नेताओं और उनके गुर्गों के कारनामों ने शर्म से अगर मुँह काला ना किया हो तो ज़रूर मुस्कुराइये!

लेकिन कोई कुछ भी कहे इस शहर की चंद पुरानी इमारतें अभी तक अपने आप को 'जेनरेशन गैप' या किसी ठेकेदार के लालच की बलि चढ़ने से तो बचाएँ हैं ही, शहर को भी सांस्कृतिक विरासत के नाम पर एक सम्मानजनक पायदान पर ला खड़ा करती हैं!